ICSE Hindi Previous Year Question Paper 2013 Solved for Class 10

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  • This paper comprises of two Sections – Section A and Section B.
  • Attempt all questions from Section A.
  • Attempt any four questions from Section B, answering at least one question each from the two books you have studied and any two other questions.
  • The intended marks for questions or parts of questions are given in brackets [ ].

SECTION – A  [40 Marks]
(Attempt all questions from this Section)

Question 1.
Write a short composition in Hindi of approximately 250 words on any one of the following topics: [15]
निम्नलिखित विषयों में से किसी एक विषय पर हिन्दी में लगभग 250 शब्दों में संक्षिप्त लेख लिखिए
(i) अपने परिवार के किसी ऐसे सदस्य का वर्णन कीजिए, जिसने आपको प्रभावित किया हो। बताइए कि उस व्यक्ति के प्रभाव ने आपके जीवन को किस प्रकार परिवर्तित किया ? आपके गुणों को निखारने में और अवगुणों को दूर करने में उस व्यक्ति ने आपकी किस प्रकार सहायता की?
(ii) त्योहार हमें उमंग एवं उल्लास से भरकर अपनी संस्कृति से जोड़े रखते हैं। आज-कल लोगों में त्योहारों को मनाने के प्रति उत्साह एवं आस्था का अभाव देखा जाता है ? लोगों की इस मानसिकता के कारण बताते हुए जीवन में त्योहारों के महत्व का वर्णन कीजिए।
(iii) वर्तमान युग में इंटरनेट अपनी उपयोगिता के कारण एक आवश्यकता बनता जा रहा है। इस विषय पर अपने विचार प्रकट कीजिए और बताइए कि इंटरनेट जीवन में सुविधा के साथ-साथ मुसीबत किस प्रकार बन जाता है ?
(iv) एक कहानी लिखिए जिसका आधार निम्नलिखित उक्ति हो –
“परिश्रम ही सफलता का सोपान है।”
(v) नीचे दिये गये चित्र को ध्यान से देखिए और चित्र को आधार बनाकर वर्णन कीजिए अथवा कहानी लिखिए, जिसका सीधा व स्पष्ट सम्बन्ध चित्र से होना चाहिए।
ICSE Hindi Question Paper 2013 Solved for Class 10
Answer:
(i) किसी पारिवारिक सदस्य का जीवन पर प्रभाव
परिवार में माता का स्थान सर्वोपरि है। पुत्र माता के ऋण से कभी उऋण नहीं हो सकता। माता और जन्मभूमि को स्वर्ग से भी श्रेष्ठ बताया गया है। “जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी।” माता अपने पुत्र के सुख के लिए स्वयं कष्ट सहती है। उसे चलना सिखाती है, उसकी रक्षा करती है और उसका सही पोषण करती है जब तक वह अपने पैरों पर खड़ा नहीं हो जाता है। वह उसकी हर खतरे से रक्षा करती है और उसका सही मार्गदर्शन करती है। पुत्र को भी अपनी माता पर पूरा विश्वास होता है क्योंकि वह एक सच्चे मित्र की भाँति कदम-कदम पर उसकी सहायता करती है। सामजिकता का पहला पाठ उसे माता से ही प्राप्त होता है।

मेरे जीवन में भी मेरी माता का प्रमुख स्थान है। उन्होंने मेरी हर जरूरत को समझकर उसका हल निकाला और मेरी सहायता की। माँ की असीम कृपा और प्रेम मुझे प्राप्त हुआ। मेरे स्कूल जाने के समय मुझे तैयार करना, मेरा बैग तैयार करना, नाश्ते और टिफिन का प्रबन्ध करना और फिर स्कूल से आने के बाद गृह-कार्य करने में मेरी सहायता करना। ये कुछ ऐसे काम हैं जिन्हें सिर्फ माँ ही कर सकती है। शाम के समय खेलने से माँ ने मुझे कभी नहीं रोका। उनका कहना है कि “स्वस्थ मस्तिष्क स्वस्थ शरीर में ही निवास करता है।”

उनका कहना है कि समय के मूल्य को समझो; हर काम समय पर करो और इस बात का ध्यान रखो कि तुम्हारा अमूल्य समय बेकार न चला जाय। मैं अपनी कक्षा में प्रथम आता हूँ यह मेरी माँ की ही देन है। मुझे उन्होंने आदर्श जीवन का पाठ पढ़ाया। सन्त और महापुरुषों के जीवन की गाथाएँ सुनाकर मेरे चरित्र का निर्माण किया। मैंने छत्रपति शिवाजी की जीवनी पढ़ी है। शिवाजी को एक मराठा साम्राज्य का सम्राट बनाया उनकी माता जीजाबाई ने। बचपन में ही शिवाजी का लालन-पालन इस प्रकार किया गया कि उसमें राजा बनने के गुण विकसित होने लगे। स्थान-स्थान पर माता जीजाबाई ने शिवाजी का मार्गदर्शन किया। यही कारण था कि शिवाजी अपनी माता का बहुत आदर करते थे और उनकी हर आज्ञा का पालन करते थे। माता के सद्गुण पुत्र में विकसित होते हैं।

मेरी माता ने मुझे सत्य, न्यायप्रियता, ईमानदारी, स्वस्थ शरीर और गुरु एवं माता-पिता की आज्ञा का पालन करना सिखाया। इससे मैं अपने गुरु का कृपापात्र बना रहा। माता की एक सीख ने मेरे ऊपर बहुत प्रभाव डाला कि परिश्रम खूब करो, लेकिन फल की इच्छा मत करो, फल ऊपर वाले पर छोड़ दो। मैंने कभी किसी चीज को भाग्य के भरोसे नहीं छोड़ा। भाग्य के भरोसे कायर लोग रहते हैं। अपनी माता से प्राप्त हुए अच्छे संस्कार मेरे जीवन के पथ को प्रदर्शित करते रहेंगे। यदि हमारे संस्कार अच्छे हैं तो हमारी बुद्धि भी सुसंस्कारित रहेगी। वह बुद्धि हमें गलत मार्ग पर नहीं ले जायेगी। मेरी माता ने मेरा हमेशा ध्यान रखा है, मुझे कुसंग से सावधान किया है और सत्संग की प्रेरणा दी है। उनको मुझसे जो आशाएँ हैं, समय आने पर मैं उन्हें पूरा करूँगा।

मुझे ईश्वर पर पूरा विश्वास है। ईश्वर की प्रार्थना का भाव मेरे अन्तः करण में तब आया जब मैं माँ के साथ दोनों समय मन्दिर जाने लगा। ईश्वर-वन्दना से हमें शक्ति प्राप्त होती है। यदि मेरी माँ मेरी तरफ़ ध्यान न देती तो मैं इतनी उन्नति नहीं कर पाता और साधारण छात्र की तरह उद्देश्यहीन हो भटकता रहता। अतः मैं धन्यवाद देता हूँ अपनी माँ को जिसने अपने सुखों की तरफ ध्यान न देकर मेरे जीवन को उद्देश्यपूर्ण बनाया।

(ii) त्योहारों के महत्व
हमारा देश भारत सदा से ही त्योहारों का देश रहा है। कुछ त्योहार धार्मिक हैं तो कुछ त्योहार राष्ट्रीय। त्योहार हमारे मन में उत्साह, उमंग एवं प्रसन्नता की उत्पत्ति करते हैं। त्योहारों का आगमन ही हमें उल्लास एवं नवचेतना से परिपूरित कर देता है। वास्तव में त्योहार हमें हमारी सभ्यता एवं संस्कृति से जोड़े रखते हैं तथा जीवन की नीरसता दूर कर उसे अमृतमय बना देते हैं। आजकल लोगों में त्योहारों को मनाने के प्रति उत्साह एवं आस्था का अभाव देखा जाता है। वर्तमान परिप्रेक्ष्य में जीवन की अतिव्यस्तता एवं स्वार्थी प्रवृत्ति के कारण आपसी अपनत्व एवं भाईचारा समाप्त होता जा रहा है। जहाँ त्योहारों पर आपस में रंग, जाति, वर्ग भूल कर आपसी प्रेम व हेलमेल के साथ सभी पड़ोसी व सम्बन्धी मिलते थे वहीं आज मोबाइल पर सन्देश भेजकर एवं सामूहिक मिलन प्रवृत्ति को त्याग कर एकाकी परिवारों में ही खुशियाँ मना कर हम त्यौहार मना लेते हैं। कुछ हमारी स्वार्थपरता ने कुछ महँगाई ने त्योहारों के उत्साह को धीमा कर दिया है।

होली-दीपावली, दशहरा, ईद या क्रिसमस कोई भी त्योहार क्यों न हो सभी का एक ही सन्देश है-आपसी प्रेम व भाईचारा फैलाना। लेकिन समय की अतिव्यस्तता, कार्यों की अतिशयता, बढ़ती महँगाई, एकाकी परिवार एवं मशीनीकरण से जीते जीवन में अब पहले सा सहानुभूति, लगाव एवं आनंद नहीं रहा।

भारतीय त्योहारों में कहीं न कहीं खेती के लहलहाने व श्रमिकों के श्रम के पुरस्कार का मिश्रित रूप सा दिखाई देता है। दीपावली घर-घर में दीपों का प्रकाश आलोकित करता है वहीं दशहरे में बुराई व दुष्टता का प्रतीक रावण जब जलाया जाता है तो जैसे तो पूरे देश में सभी इसका समर्थन सा करते जान पड़ते हैं। रक्षा-बन्धन भाई-बहन के पवित्र सम्बन्ध का प्रतीक है जो सभी के समक्ष रक्षा व सहायता का रूप प्रस्तुत करता है। समय के परिवर्तन ने कहीं न कहीं हमारी इस प्रवृत्ति को धीमा सा कर दिया है।

वास्तविक उद्देश्य से भटक हम दिखावे की प्रवृत्ति अपना कर त्योहारो को मनाते हैं। परन्तु आन्तरिक भाव लुप्तप्राय है। देश की संस्कृति की झलक कहीं दृष्टिगोचर नहीं होती। कभी-कभी त्योहारों की आड़ में असमाजिक तत्व मद्यपान एवं अशोभनीय भाषा का प्रयोग करते हैं। इससे त्योहारों की पावनता को ठेस लगती है। यदि इन बुराइयों से बचकर हम त्योहार मनाएं तो इनका वास्तविक आनंद उठा सकते हैं। त्योहारों का हमारे जीवन में बहुत महत्व है। ये हमारी सभ्यता एवं संस्कृति के दर्पण होते हैं। जीवन को रसानुभूति एवं उमंग से तरंगित कर उत्साहवर्द्धन करते हैं। अतः सुख-समृद्धि का प्रतीक बन ये त्योहार हमें बुराई पर भलाई की-असत्य पर सत्य की-अन्याय पर न्याय की जीत की सीख देते हैं।

(iii) वर्तमान युग में इंटरनेट की उपयोगिता
आज दुनिया आपकी मुट्ठी में है। बस क्लिक कीजिए और सब कुछ आपकी आँखों के सामने हाज़िर । विज्ञान का एक अद्भुत आविष्कार है-कम्प्यूटर और उसमें भी इंटरनेट सुविधा तो सोने पर सुहागा है। – यह एक ऐसी व्यवस्था है जो दुनिया के सभी लोगों को जोड़ने का काम करती है। यह किसी एक की निजी संपत्ति नहीं है, जो भी साइट को खोले, वही उससे संबंधित जानकारी प्राप्त कर सकता है। इंटरनेट सुविधा ने ज्ञान के क्षेत्र में अद्भुत क्रांति ला दी है। समुद्र के भीतर उतरिए या आसमान की सैर कीजिए।

अतीत को जानिए या भविष्य में झांकिए, दुनिया के किसी भी कोने से संबंधित कोई भी जानकारी चाहिए तो वह यहाँ उपलब्ध है। ज्ञान, विज्ञान, खेल, शिक्षा, संगीत, फिल्म, कला हर क्षेत्र की जानकारी इस पर मौजूद है। देश-विदेश के समाचार, मौसम, खेल संबंधी ताजा जानकारी यहाँ है। चाहे तो संगीत सुनिए या खेल खेलिए, ज्योतिष संबंधी जानकारी प्राप्त कीजिए, विवाह करवाना है या नौकरी चाहिए, खरीददारी कीजिए या सामान बेचिए, होटल की बुकिंग करवाइए, रेल का टिकट लीजिए या बिल चुकाइए। इंटरनेट पर आपके लिए सभी सुविधाएँ हैं।

अपने ज्ञान का विस्तार कीजिए या अपनी जानकारी दूसरों तक पहुँचाइए। ई-क्लब के सदस्य बनिए और अपनी मंडली के साथ कलाएँ, अपना ज्ञान बाँटिए। दूर बैठे लोगों से संपर्क स्थापित कीजिए, उनसे बातचीत कीजिए, उनकी फोटो देखिए। तुरंत फोटो भेजिए, कैमरा फोन से चैट’ कीजिए। ‘वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग कीजिए। देश-विदेश में कहीं भी दाखिला लेना चाहते हैं यहीं से फार्म भेजिए, इलाज करवाना है तो घर बैठे, अस्पतालों की जानकारी प्राप्त कीजिए और अब तो दूर बैठे-बैठे रोग का इलाज पाइए, डॉक्टर को ऑपरेशन थियेटर तक आने की ज़रूरत नहीं। दूर बैठे-बैठे मशीनों का संचालन कर लेते हैं और ऑपरेशन पूरा हो जाता है।

मनोरंजन और ज्ञान विस्तार का इससे अच्छा साधन और क्या हो सकता है। पर इसका दुरुपयोग भी किया जाता है। वाइरस डालकर नुकसान पहुँचाया जाता है। जो मस्तिष्क अच्छे शोध कार्य में लग सकते हैं गलत दिशा में बढ़ते हैं। विभिन्न गुप्त जानकारियों को हासिल कर लिया जाता है जो संस्थाओं या देश के लिए हानिकारक होता है। इसके माध्यम से अफवाहें फैलाई जाती हैं, धमकियाँ दी जाती हैं। अश्लीलता को जो बढ़ावा इसके माध्यम से मिला रहा है, वह सामाजिक स्वास्थ्य के लिए एक बहुत बड़ी चुनौती है। यही नहीं युवा और बच्चे घंटों इसका प्रयोग करते हैं, जिससे उनके स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ता है, बच्चे पुस्तकें नहीं पढ़ते, पत्र-लेखन की कला और कार्ड भेजने की परंपरा तो लगभग समाप्त ही हो गई है। तो क्या इंटरनेट की दुनिया से हम भाग खड़े हों या और कोई उपाय है। यदि इसका प्रयोग नियंत्रित हो और समझदारी से किया जाए तो इसके लाभ हमें निश्चय ही समृद्ध करेंगे।

(iv) परिश्रम को सफलता की कुंजी माना गया है। परिश्रम ही जीवन है-परिश्रम की सदा विजय होती है। परिश्रम ही उज्ज्वल भविष्य का दाता है। इससे ही सब कार्यों की सिद्धि होती है। सच ही कहा गया है कि परिश्रमी व्यक्ति के पास सुख-सम्पदा स्वयं ही विद्यमान होती है। वास्तव में यह कथन सत्य ही है कि परिश्रम ही सफलता का सोपान है। संसार में जितने भी व्यक्तियों ने जीवन में सफलता पायी है वे सर्वप्रथम प्रतिभावान तो थे ही साथ ही परिश्रमी भी थे। परिश्रम ही सफलता के द्वार तक उन्हें लाया।

इस कर्म प्रधान संसार में कर्मतीर और कर्मभीरु दो प्रकार के लोग दिखाई देते हैं। कर्मवीर अपने कर्मों से सफलता पाते हैं इसके विपरीत कर्मभीरु काम से जी चुराकर भागते हैं। इसी तथ्य को प्रमाणित करने के लिए एक कहानी प्रस्तुत किसी नगर में बहुत बड़ा व्यापारी रहता था। उसने अपनी मेहनत से अपार धन एकत्रित कर लिया था। उसके परिवार में उसकी पत्नी, बेटी एवं एक बेटा थे। उसका व्यापार दिन दूना रात चौगुना बढ़ रहा था। अपनी पुत्री का विवाह उसने धूमधाम से किया। व्यापारी का बेटा बहुत आलसी था।

किसी कार्य में उसका मन नहीं लगता था। वह व्यापारी के लिए एक बड़ी चिन्ता का कारण बन गया। एक दिन उसने अपने बेटे का बुला कर कहा “बेटा जाकर कुछ कमा ला, अन्यथा तुझे आज रात को भोजन नहीं मिलेगा। आलसी पुत्र अपनी माँ के पास गया और उसके सामने रोने लगा। माँ बेटे की बातों को सुनकर पसीज गई और अपने पास से एक मुहर उसे दे दी। बेटे ने उसे ले जाकर पिता को दे दिया और कहा कि ये उसकी कमाई है। व्यापारी दूरदर्शी एवं चालाक था। उसने बेटे से कहा इसे कुँए में फेंक दे। बेटे ने आव देखा व ताव, तुरन्त मुहर कुँए में फेंक दी। पिता सत्य समझ गया। उसने उसकी माँ को कुछ दिन उसके मायके भेज दिया।

कुछ दिनों के उपरान्त पिता (व्यापारी) ने अपने पुत्र को बुलाया और उससे कुछ कमाकर लाने के लिए कहा। इस बार माँ के न होने पर वह अपनी बहन के पास गया व सारी कथा समझा कर रोने लगा। बहन को भी भाई पर दया आ गई। उसने कुछ धन उसे दे दिया। पुत्र ने वह धन लाकर अपने पिता को दिया। पिता ने वह धन भी कुँए में फेंक देने को कहा। बेटे ने पूर्ववत उस धन को भी कुँए में फेंक दिया। व्यापारी सब समझ गया। व्यापारी ने अपनी बेटी को जो कि घर पर आयी हुई थी वापस उसके ससुराल भिजवा दिया।

तीसरी बार व्यापारी ने उससे फिर कुछ कमाकर लाने के लिए कहा। अब बेटे की मदद के लिए कोई नहीं था। उसने अपने मन में दृढ़ निश्चय किया कि अब वह अपनी मेहनत की कमाई लाकर ही पिता को देगा। ___ वह घर से कार्य की तलाश में निकल पड़ा। शहर में उसे बोझा ढोने का काम मिला। पूरे दिन वह सेठ की बोरियाँ उठाता रहा और गोदाम में माल भरता रहा। पूरे दिन के परिश्रम के उपरान्त उसे पाँच रुपये मिले। वह खुशी-खुशी पिता के पास पहुँचा एवं उसके हाथ में पाँच रुपए रखकर कहने लगा कि उसने यही कमाया है। पिता ने उसे भी पहले की तरह कुँए में फेंक देने के लिए कहा। लेकिन इस बार बेटे ने उन पैसों को फेंकने से मना कर दिया। वह बोला कि ये धन उसने बड़ी मेहनत से कमाया है। वह इसे व्यर्थ यूँ नहीं गँवा सकता।

व्यापारी पिता बेटे के इसी परिवर्तन को देखना चाहता था। अब उसके पुत्र को मेहनत का मूल्य पता चल चुका था। अब व्यापारी का व्यापार और तरक्की पा सकता था। परिश्रम ने उसके पुत्र को जीना ही नहीं सिखाया बल्कि धन का मूल्य भी बता दिया था। इसीलिए कहा जाता है कि “परिश्रम की सफलता का सोपान है।”

(v) चित्र प्रस्ताव
प्रस्तुत चित्र में हम देख रहे हैं कि कुछ सैनिक वीर समूह में खड़े हैं। उनके हाथ में एक अबोध बच्चा है। उसी बच्चे पर उनकी निगाहें टिकी हुई हैं। लगता है पास में कोई इमारत गिर गयी है। इस दुखद घटना की जिम्मेदारी किसे दी जाए कहना कठिन लगता है। मुम्बई की भागती जीवन की आपा-धापी में लोग इतने मजबूर एवं लाचार होकर अपना जीवन गुजर बसर करते हैं। कितनी बार उस बिल्डिंग की दयनीय दशा को समाचार पत्रों में छापा गया। स्थानीय लोगों को सचेत किया गया था कि वह सभी उस स्थान पर से हट जाएँ। परन्तु परिस्थितियाँ पृथक थीं। कहाँ जाएँ वे सभी लोग ये कौन बताता ? हमारे देश में योजनाएं बनती तो हैं और ठण्डे बस्ते में डाल दी जाती हैं। इसी का दुःखद परिणाम था यह।

गरीब, असहाय जनों के जीवन का मूल्य किसे महत्वपूर्ण लगता है। आज इस दर्दनाक हादसे ने जन-सामान्य को जो जर्जर इमारतों में मजबूरी में गुजर बसर करते हैं यह सोचने पर मजबूर कर दिया है कि उनकी जिन्दगी कितनी असुरक्षित है। दूसरी ओर प्रश्न उठता है कि क्या सरकार की कोई जिम्मेदारी आम जनता के प्रति, उसकी समस्याओं के प्रति नहीं है। सुबह के पाँच बजे एक जोर से धमाका सा हुआ और मुम्बई के खासपुरा इलाके में स्थित एक इमारत जो कि अति जर्जर थी झरझरा कर अचानक गिर पड़ी। दो परिवार जो उसकी ऊपरी मंजिल पर रहते थे इस हादसे का शिकार बने। पूरा दिन स्थानीय प्रशासन एवं सेना के जवानों ने आपदा में सहयोग किया। तीन घायलों को अस्पताल पहुंचाया एवं एक बुजुर्ग की इस दुर्घटना में मृत्यु हो गई।

सभी राहत कार्यों में जुटे थे। अचानक एक तख्ते के नीचे एक छोटी बालिका दबी मिली। इसे ईश्वर की महिमा ही कहा जा सकता है कि दम्पत्ति घायल थे व उनके ही साथ सो रही बालिका को जरा सी खरोंच भी नहीं आयी थी।। जैसे ही. छत गिरी किनारे की ओर सो रही यह बच्ची सुरक्षित पड़ी रही। माता-पिता अस्पताल में भर्ती थे। सेना के जवानों ने खुशी से भरकर इस बालिका को गोद में उठा लिया व इसे भी अस्पताल ले जाने की कोशिश में लग गए। लोगों की भीड़ ईश्वर को इस चमत्कार के लिए धन्यवाद दे रही थी। ऐसा देखकर मेरे मन में ये विचार आया कि ईश्वर जिसके साथ होता है उसका कोई बाल भी बांका नहीं कर सकता।

Question 2.
Write a letter in Hindi in approximately 120 words on any one of topics given below :
निम्नलिखित में से किसी एक विषय पर हिन्दी में लगभग 120 शब्दों में पत्र लिखिए- [7]
(i) आपके क्षेत्र में सड़कों पर बहुत अधिक पानी जमा हो जाता है, क्योंकि अधिकांश सड़कें टूटी हुई हैं। जगहजगह ‘स्पीड ब्रेकर’ यातायात में सहायक न होकर बाधक बन गए हैं। परिस्थिति की पूर्ण जानकारी देते हुए नगर निगम के अधिकारी को शिकायती पत्र लिखिए।
(ii) आपके विद्यालय में कुछ अतिथि आए थे, जिनकी देखभाल की जिम्मेदारी आपको सौंपी गई थी। अपनी माताजी को पत्र लिखकर बताइए कि वे अतिथि विद्यालय में क्यों आए थे और आपने उनके लिए क्या-क्या किया?
Answer:
(i) मुख्य नगर अधिकारी को पत्र ।

सेवा में,
श्रीमान मुख्य नगर अधिकारी महोदय,
नगर निगम,
आगरा।
विषय : सड़कों की बुरी स्थिति से परिचित कराते हुए शिकायती पत्र
महोदय,
मैं ऋषि गर्ग कमला नगर क्षेत्र का निवासी हूँ। हमारे क्षेत्र में ‘ब्लॉक ए’ में सड़कों की दशा बहुत खराब है। बरसात में यहाँ से गुजरना बहुत मुश्किल होता है। सड़कों पर बहुतायत में पानी जमा हो जाता है। विद्यालय आने-जाने में हमें बहुत परेशानी उठानी पड़ती है। सड़कों पर आठ-दस इंच गहरे गड्ढे बने हैं जिन पर सदैव कीचड़ जमा रहती है।
महोदय यहाँ की अधिकांश सड़कें टूटी हैं जिससे हर दिन कोई न कोई दुर्घटना हो जाती है। जगह-जगह यातायात की सुविधा हेतु बनाए ‘स्पीड-ब्रेकर’ आम जनता के लिए सिरदर्द साबित हो रहे हैं। अभी कुछ दिन पहले एक स्कूटर सवार वृद्धा की गिरकर हाथ की हड्डी टूट गयी। आने जाने वालों को इससे असुविधा एवं समस्या भुगतनी पड़ रही है। क्योंकि इनकी ऊँचाई नियमानुसार नहीं रखी गयी है।
अतः आपसे मेरा अनुरोध है कि आप मेरी समस्याओं को समझते हुए हम आम नागरिकों को प्रतिदिन होने वाली असुविधा से मुक्ति दिलवाने में सहयोग करेंगे एवं सड़कों की मरम्मत तथा जनसामान्य के सहयोग हेतु आदेश पारित करेंगे।
आपके इस सहयोग हेतु धन्यवाद।

प्रार्थी
(ऋषि गर्ग)
एच. आई. जी.
कमला नगर,
आगरा।

दिनांक : 13.04.2013

पत्र भेजने का पता
सेवा में,
श्रीमान मुख्य नगर अधिकारी,
नगर निगम,
आगरा।

(ii) माताजी को पत्र

सेंट थॉमस स्कूल
देहरादून
दिनांक : 5 अप्रैल 2013

आदरणीय माताजी,
सादर प्रणाम।
आशा है आप घर पर कुशलपूर्वक होंगी। मैं भी छात्रावास में अच्छी तरह हूँ।
पिछले हफ्ते मैं आपको पत्र नहीं लिख सका क्योंकि हमारे विद्यालय को आई.सी.सी. अन्तर-विद्यालय फुटबॉल प्रतियोगिता हेतु राज्य स्तरीय रूप में संचालक चुना गया।
हमारे विद्यालय में 30 अतिथि टीम पधारी थीं। मैं अपने साथियों के साथ उन सभी अतिथियों के लिए द्वार पर अपनी जिम्मेदारी संभाले था क्योंकि मुझे उनका स्वागत करना था। तत्पश्चात् मैं अन्य तीन साथियों के साथ उन्हें उनके कमरों में पहुँचा कर आया। आपको यह जानकर प्रसन्नता होगी कि हम सभी साथियों ने अपने अध्यापकों के साथ सारी व्यवस्थाएँ सम्भाली थीं जिसकी तैयारी हमने पूर्व में की थी।
दूसरे दिन सभी प्रतियोगिताएं हुईं एवं बाहर से आए अतिथि जब जाने लगे तो उन्होंने हमारे अध्यापक एवं टीम के प्रति हार्दिक धन्यवाद दिया। माताजी मुझे बहुत प्रसन्नता हुई कि मैंने जिम्मेदारी निभाते हुए अपना कर्तव्य निभाया। इस प्रकार मैंने अपने विद्यालय में आए अतिधिजनों को प्रसन्नता एवं परिश्रमपूर्ण व्यवहार से खुश रखा।
आशा करता हूँ आपको अपने पुत्र की इस जिम्मेदारी की बातें जान कर प्रसन्नता हो रही होगी। आपने ठीक ही कहा था परिस्थितियाँ इन्सान में परिवर्तन लाकर उसे सब सिखा देती हैं। अब मैं भी बहुत अच्छी बातें सीख रहा हूँ। माताजी मेरा प्रणाम फिर से एक बार स्वीकार करें एवं शीघ्रातिशीघ्र पत्र का उत्तर देने की कोशिश करना। पत्रोत्तर की प्रतीक्षा में,

आपका आज्ञाकारी पुत्र
अमन

पत्र भेजने का पता
सेवा में,
श्रीमान रमेश गुप्ता
सी-4 हौज सराय,
लखनऊ।

Question 8.
Read the passage given below and answer in Hindi the questions that follow, using your own words as far as possible:
निम्नलिखित गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़िये तथा उसके नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर हिन्दी में लिखिए। उत्तर यथासम्भव आपके अपने शब्दों में होने चाहिए
नामू की माँ ने अपने बेटे से कहा, “जा, कुल्हाड़ी लेकर पलाश के पेड़ से कुछ छाल उतार ला।”
“अभी लाया माँ।” कहकर नामू ने कुल्हाड़ी उठाई और जंगल की ओर निकल गया। वहाँ उसने पलाश के पेड़ की छाल उतारी और फिर घर की ओर चल पड़ा। रास्ते में विचार करने लगा कि जब मैं कुल्हाड़ी से पेड़ पर प्रहार करता था, तो एक आवाज़ पेड़ से निकलती थी, कहीं वह आवाज़ पेड़ की कराह तो नहीं थी ? जब मैं कुल्हाड़ी से पेड़ पर प्रहार करता होऊँगा, तो पेड़ को पीड़ा भी तो होती होगी।

नामू ने घर आकर पलाश की छाल माँ को सौंप दी और स्वयं घर से दूर कुल्हाड़ी लेकर जा बैठा। वहाँ बैठकर उसने कुल्हाड़ी से अपना पैर रगड़ना शुरू किया। रगड़ के साथ पाँव में पीड़ा भी होती थी, खून बहता था और नामू के मुँह से हल्की-हल्की चीखें भी निकलती थीं। यह सब उसने पेड़ की पीड़ा का अनुभव करने के लिए किया था।
कुछ देर बाद वह घर लौट आया और माँ से खाना माँगा। उसके चेहरे पर पीड़ा की स्पष्ट रेखाएँ उभर आई थीं, मगर वह चुप था। माँ ने देखा, लेकिन कुछ समझी नहीं। एकाएक माँ की दृष्टि उसके कपड़ों पर पड़ी, जो खून से लाल हो चुके थे। माँ ने घबराकर पूछा, “यह क्या हुआ, नामू ?”
“कुछ नहीं माँ, तुम चिन्ता मत करो ।”
माँ और अधिक घबराकर बोली, “चिन्ता कैसे न करूँ बेटा, तेरे शरीर का खून देखकर मैं चिन्ता नहीं करूँगी, तो फिर और कौन चिन्ता करेगा?”
नामू कहने लगा, “माँ तुमने पलाश की छाल मँगवाई थी, तो कुल्हाड़ी से छाल उतारते हुए, मुझे ऐसा अनुभव हुआ कि पेड़ कराह रहा है और जैसे उसे पीड़ा हो रही है। अपने पाँव पर कुल्हाड़ी की रगड़ से मैं यह जानना चाहता था, कि क्या सभी को एक-सी पीड़ा होती है ?”
बेटे की बात सुनकर, माँ का हृदय भर आया। माँ की आँखों से आँसुओं की धारा बह निकली। उसने नामू को गले लगाते हुए कहा, “लगता है, मेरे पुत्र के रूप में किसी संत ने जन्म लिया है। बेटे, तू पराये दुःख से दुःखी होकर, उस दुःख का अनुभव करना चाहता था; पराया दुःख भी पेड़ का, जिसमें तुझे प्राण दिखाई दिये। अवश्य ही, तू एक दिन बड़ा संत बनेगा ।” इस प्रकार माँ ने उसे संत बनने का आशीर्वाद दिया। आगे चलकर यह ‘नामू’ नामदेव के नाम से महाराष्ट्र का प्रसिद्ध संत हुआ।

वास्तव में दया, धर्म का भाव रखना और दूसरे के दुःख को महसूस करना संतों का स्वभाव होता है। आज अपने पर्यावरण को बचाने के लिए नामदेव जैसे संतों की आवश्यकता है, जिनके मन में न केवल जीवों के प्रति ही दया की भावना हो, बल्कि पेड़-पौधों के लिए भी अपनेपन का भाव हो। आज के स्वार्थी मानव ने प्रकृति के प्रति जिस प्रकार का व्यवहार किया है, वह निन्दनीय है क्योंकि मानव के लोभ ने धरती के अस्तित्व को ही संकट में डाल दिया है।
(i) नामू को माँ ने क्या आदेश दिया था ? माँ के आदेश का पालन करते समय उसने क्या विचार किया? [2]
(ii) घर आकर नामू ने क्या किया और क्यों ? [2]
(iii) माँ क्या देखकर चिन्तित हुई ? उसका हृदय क्यों भर आया ? [2]
(iv) संत के स्वभाव की क्या विशेषता होती है ? आगे चलकर नामू किस रूप में प्रसिद्ध हुआ ? [2]
(v) आपको इस गद्यांश से क्या शिक्षा मिली ? पेड़-पौधों की सुरक्षा क्यों आवश्यक है ? [2]
Answer.
(i) नामू को माँ ने कुल्हाड़ी लेकर पलाश के पेड़ से कुछ छाल उतार लाने के लिए आदेश दिया। माँ के आदेश का पालन करते समय उसने अपने मन में विचार किया कि जब वह कुल्हाड़ी से पेड़ पर प्रहार करता था, तो एक आवाज पेड़ से निकलती थी, कहीं वह आवाज पेड़ की कराह तो नहीं थी ? जब वह कुल्हाड़ी से पेड़ पर प्रहार करता होगा, तो पेड़ को पीड़ा भी तो होती होगी।

(ii) नामू ने घर आकर पलाश के छाल माँ को सौंप दी और स्वयं घर से दूर कुल्हाड़ी लेकर बैठ गया। वहाँ बैठकर उसने कुल्हाड़ी से अपना पैर रगड़ना शुरू किया। रगड़ के साथ पाँव में पीड़ा भी होती थी, खून बहता था और नामू के मुँह से हल्की-हल्की चीखें भी निकलती थीं। यह सब उसने पेड़ की पीड़ा का अनुभव करने के लिए किया था।

(iii) नामू के पैर से खून बहता देखकर माँ चिन्तित हुई। नामू के मन के भाव जानकर माँ का हृदय भर आया। नामू ने माँ से कहा कि जब मैं कुल्हाड़ी से पेड़ की छाल उतार रहा था तो मुझे ऐसा अनुभव हुआ कि पेड़ कराह रहा है और पेड़ को पीड़ा हो रही है। अपने पाँव पर कुल्हाड़ी की रगड़ से वह यह जानना चाहता था कि क्या सभी को एक सी पीड़ा होती है ? नामू की बातें सुनकर माँ का हृदय भर आया।

(iv) दया, धर्म का भाव रखना और दूसरे के दुःख को महसूस करना संत के स्वभाव की विशेषता होती है। आगे चलकर नामू महाराष्ट्र के प्रसिद्ध संत नामदेव के रूप में प्रसिद्ध हुआ।

(v) इस गद्यांश से हमें यह शिक्षा मिलती है कि हमें पर्यावरण के प्रति संवेदनशील बनना चाहिए और वन-संपदा का संरक्षण करना चाहिए। मानव ने अपने लोभ के कारण पेड़-पौधों की अंधाधुंध कटाई की है और धरती के अस्तित्व को ही संकट में डाल दिया है। इसलिए पेड़-पौधों की सुरक्षा आवश्यक है।

Question 4.
Answer the following according to the instructions given :
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर निर्देशानुसार लिखिए
(i) निम्न शब्दों से विशेषण बनाइए : [1]
नीति, साहित्य
(ii) निम्न शब्दों में से किसी एक शब्द के दो पर्यायवाची शब्द लिखिए : [1]
मार्ग, माता।
(iii) निम्न शब्दों में से किन्हीं दो शब्दों के विपरीतार्थक शब्द लिखिए : [1]
निर्दोष, शांत, पतन, अन्त।
(iv) निम्नलिखित मुहावरों में से किसी एक की सहायता से वाक्य बनाइए : [1]
आँखों पर पर्दा पड़ना, घुटने टेकना।
(v) भाववाचक संज्ञा बनाइए : [1]
ईश्वर, उत्तम।
(vi) कोष्ठक में दिए गए निर्देशानुसार वाक्यों में परिवर्तन कीजिए :
(a) असफल हो जाने पर, उसे भारी दुःख हुआ। [1]
(वाक्य शुद्ध कीजिए।)
(b) परिश्रमी व्यक्ति विपत्तियों से नहीं घबराता है। [1]
(वचन बदलिए)
(c) जीवन-भर मैं इसी आचरण का पालन करता आया हूँ। [1]
(रेखांकित शब्दों के लिए एक शब्द लिखकर वाक्य को पुनः लिखिए)
Answer:
(i) विशेषण शब्द –
नीति – नैतिक
साहित्य – साहित्यिक

(ii) पर्यायवाची शब्द –
मार्ग – पथ, राह
माता – माँ, जननी

(iii) शब्दों के विपरीत शब्द –
निर्दोष – दोषी
शांत – उग्र
पतन – उत्थान
अन्त – आरम्भ

(iv) मुहावरों का वाक्य प्रयोग –
आँखों पर पर्दा पड़ना (समझ न आना) –
वाक्य प्रयोग – रमेश की आँखों पर तो उसके मित्र राघव की मित्रता का पर्दा पड़ गया है।
घुटने टेकना (हार मान लेना) –
वाक्य प्रयोग – कारगिल युद्ध में पाकिस्तान को भारत के सामने घुटने टेकने पड़े।

(v) भाववाचक संज्ञा में परिवर्तन –
ईश्वर – ऐश्वर्य
उत्तम – उत्तमता

(vi) कोष्ठक में दिए गए निर्देशानुसार वाक्यों में परिवर्तन
(a) उसे असफल हो जाने पर भारी दुःख हुआ।
(b) परिश्रमी व्यक्ति विपत्तियों से नहीं घबराते हैं।
(c) जीवन मैं इसी आचरण का पालन करता आया हूँ।

Section – B (40 Marks)

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