ICSE Hindi Previous Year Question Paper 2012 Solved for Class 10

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  • This paper comprises of two Sections – Section A and Section B.
  • Attempt all questions from Section A.
  • Attempt any four questions from Section B, answering at least one question each from the two books you have studied and any two other questions.
  • The intended marks for questions or parts of questions are given in brackets [ ].

SECTION – A  [40 Marks]
(Attempt all questions from this Section)

Question 1.
Write a short composition in Hindi of approximately 250 words on any one of the following topics :
निम्नलिखित विषयों में से किसी एक विषय पर हिन्दी में लगभग 250 शब्दों में संक्षिप्त लेख लिखिए
(i) ज्ञान प्राप्त करने के बहुत से साधन हैं। यात्रा पर जाना भी किसी पाठशाला में जाकर शिक्षा प्राप्त करने से कम नहीं है। ऐसी ही किसी यात्रा का वर्णन कीजिए। बताइए कि उस यात्रा से आपने क्या-क्या सीखा ?
(ii) कल्पना कीजिए कि आपको किसी प्रसिद्ध व्यक्ति का साक्षात्कार (Interview) लेने की जिम्मेदारी सौंपी गई है। बताइए कि वे प्रसिद्ध व्यक्ति कौन हैं और आप उनसे कौन-कौन से तीन प्रश्न पूछेगे व क्यों ?
(iii) ‘ऊँचे लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए माता-पिता तथा अध्यापकों द्वारा बच्चों पर डाला जाने वाला दबाव अनुचित है’ विषय के पक्ष या विपक्ष में अपने विचार प्रकट कीजिए।
(iv) एक मौलिक कहानी लिखिए जिसका आधार निम्नलिखित उक्ति हो –
“जान बची तो लाखों पाये।”
(v) नीचे दिये गये चित्र को ध्यान से देखिए और चित्र को आधार बनाकर वर्णन कीजिए अथवा कहानी लिखिए, जिसका सीधा व स्पष्ट सम्बन्ध चित्र से होना चाहिए।
ICSE Hindi Question Paper 2012 Solved for Class 10
Answer:
(i) यात्रा का वर्णन
मानव स्वभाव से ही जिज्ञासु है। ज्ञान प्राप्त करने के लिए वह निरन्तर प्रयत्नशील रहता है। उसके लिए वह सभी साधनों को अपनाता है, विद्यालय, पुस्तकें, समाचार-पत्र, इन्टरनेट इन सभी साधनों से वह ज्ञान प्राप्त कर अपने परिवेश को खंगालता रहता है। इसीलिए वह यात्राओं पर जाता है। यात्रा पर जाना किसी पाठशाला में जाकर शिक्षा प्राप्त करने से कम नहीं है क्योंकि नई जीवन शैलियों से परिचित होने में, नए-नए नगर, स्थान तथा ऐतिहासिक-सांस्कृतिक धार्मिक स्थलों को देखने में उसे विशेष उत्साह, आनन्द तथा ज्ञान की प्राप्ति होती है। इसीलिए विद्यालयों में भी विद्यार्थियों को शैक्षिक भ्रमण पर ले जाया जाता है।

सदैव की भाँति इस वर्ष भी पिताजी ने माताजी तथा हम दोनों भाइयों के साथ शीतावकाश में शिवपुरी जाकर माधवराव जीवाजी अभयारण्य देखने का कार्यक्रम बनाया। आगरा से हमने ‘ताज एक्सप्रेस’ नामक ट्रेन पकड़ी और ग्वालियर पहुँच गए। ग्वालियर में पिताजी को कुछ काम था उनको वहाँ देर लग गई। अब शाम के पाँच बज चुके थे। रात होने वाली थी। हम रात को ग्वालियर रुकने की सोच ही रहे थे कि हमको शिवपुरी जाने वाली अन्तिम बस दिखाई दी। पिताजी ने तुरन्त टिकट लिए और हम सब उसमें बैठ गए। पाँच मिनट का समय था। माताजी ने पिताजी से आग्रह करके समोसे इत्यादि कुछ खाने पीने का सामान मँगवा लिया। पिताजी ने कहा भी कि अगले बस स्टैंड पर बस रुकने पर कुछ खा पी लेंगे किन्तु माताजी ने कहा बच्चों का (हमारा) साथ है कुछ खाने पीने का सामान अवश्य ही साथ होना चाहिए। बगल में टोसा, सफर का भरोसा। पाँच मिनट बाद ही खचाखच भरी हुई बस चल दी।

जाड़ों की ऋतु थी, जल्दी ही रात घिरने लगी। बस चली जा रही थी यात्री ऊँघने लगे, अचानक एक झटका लगा और बस रुक कई। उसके इंजन में से धुआँ निकलने लगा। सभी यात्री घबरा गए। महिलाएं तथा बच्चे रोने लगे। बस चालक तथा परिचालक ने फौरन बस के सभी दरवाजे खोल दिए। आनन-फानन में बस खाली हो गई। उन्होंने घोषणा की कि बस खराब हो गई है, आगे नहीं जा सकती। हाँ, अब बस का इंजन ठंडा हो गया था, धुंआ नहीं निकल रहा था अतः बस में बैठा जा सकता था। पर मुसीबत तो बहुत बड़ी थी। रात का समय, खराब बस, मध्य प्रदेश का डाकुओं का इलाका। यही अन्तिम बस थी-सहायता की आशा नहीं, सबके मुँह पर हवाइयाँ उड़ रही थीं। मेरे पिताजी के सुझाव पर कुछ लोग पास के गाँव में सहायता लाने के लिए पैदल ही गाँव की ओर चल दिए। इधर बस में छोटे बच्चों ने रोना शुरू कर दिया।

एक बच्चा तो भूख से बेहाल हो रोए जा रहा था। ऐसे में मेरी माँ की दूरदर्शिता काम आई। उन्होंने तुरन्त अपने साथ लाए हुए केले, समोसे, बिस्कुट बच्चों को खाने को दे दिए। बच्चों का रोना-धोना समाप्त हुआ और वे सो गए, यात्री ऊँघने लगे। अचानक मुझे कोयल की आवाज सुनाई पड़ी, बदले में मोर की आवाज आई। पिताजी भी सजग हो उठे। सर्दियों में रात में मोर व कोयल की आवाज सन्देह उत्पन्न करने वाली थी। उन्होंने माँ को इशारा किया और माँ ने सभी कीमती चीजों तथा रुपयों को समेट कर छिपाने का उपक्रम किया। मैंने माँ को आश्वस्त करते हुए वे चीजें तथा रुपये ले लिए। पिताजी ड्राइवर तथा कंडक्टर को सावधान करने के लिए नीचे उतरे क्योंकि वे कोई वाहन रुकवाने को नीचे सड़क पर खड़े थे। मैं व भाई भी पिताजी के साथ उतरे कि हमने एक वाहन की हैडलाइट देखी। हम सब खुश हो गए कि चलो कोई सहायता मिलेगी।

देखा तो वह एक जीप थी जिसमें सिपाहियों की वर्दी पहने कुछ लोग थे। मैं दूर ही था अचानक मैंने देखा कि उनमें से कुछ लोगों ने वर्दी तो पहनी थी पर पैरों में चप्पल व सैंडल भी थी। मेरा माथ ठनका, मैंने तुरन्त बस में जोर से कहा ‘डाकू’ और स्वयं माँ के कीमती सामान व भाई के साथ बस के नीचे पहियों के पीछे दुबक कर बैठ गया। वास्तव में वे सब डाकू ही थे। वे ड्राइवर तथा कंडक्टर से झगड़ रहे थे और कुछ बस में लूट मचाने को चढ़ने लगे। मेरे द्वारा सावधान कर देने से कुछ लोगों ने अपने रुपये इत्यादि को जल्दी से छिपा दिया, तो कुछ सोते ही रहे। ये डाकू बड़े आराम से एक-एक सामान देख रहे थे।

उनको पता था कि अब कोई नहीं था जो उनका सामना करे। किन्तु दैवयोग से दो बातें एक साथ हुईं। उधर तो गाँव से कुछ लोग सहायता के लिए बन्दूक, डंडे इत्यादि ले कर आ गए और उधर पैट्रोलिंग के लिए निकली हुई पुलिस की जीप आ गई। फिर क्या था ? डाकू तो आनन-फानन में सब छोड़-छाड़ कर भाग खड़े हुए। पुलिस ने उनका पीछ किया और गाँव वालों ने सबको सहारा दिया। हम भी बस के नीचे से निकल आये। पुलिस ने वायरलैस से दूसरी गाड़ी मंगाने का सन्देश भेज दिया। सबकी जान में जान आ गई। किसी ने पूछा ‘डाकू’ कह कर किसने सावधान किया। पता लगने पर उन्होंने मुझे बहुत शाबासी दी।

इस रोमांचक यात्रा में मैंने बहुत सी बातें सीखीं।

  1. कहीं भी यात्रा पर जाते समय थोड़ा बहुत खाने का सामान हमेशा साथ रखना चाहिए।
  2. यात्रा पर जाते समय सभी सहयात्रियों की यथासम्भव सहायता करनी चाहिए।
  3. अपने आँख व कान हमेशा खुले रखने चाहिए अर्थात् सचेत रहना चाहिए तभी मैं डाकुओं को पहचान पाया।
  4. आगामी किसी भी खतरे का सामना करने को तैयार रहना चाहिए।
  5. हमेशा हिम्मत से काम लेना चाहिए और दूसरों को भी हिम्मत बँधानी चाहिए।
  6. परिस्थितियाँ कभी एक सी नहीं रहतीं इसलिए हर परिस्थिति में प्रसन्न रहना चाहिए तभी हम सच्चे इन्सान कहला सकते हैं।

(ii) किसी प्रसिद्ध व्यक्ति का साक्षात्कार
आज का दिन मेरे जीवन का अत्यन्त महत्वपूर्ण दिन था। मैं बहुत प्रसन्न था। मेरा मन आसमान से बातें कर रहा था क्योंकि आज मुझको एक ऐसी जिम्मेदारी सौंपी गई थी जिसका मैं स्वप्न ही देख सकता था। आज मुझको मेरे अध्यापक ने बुलाकर कहा ‘कल आगरा में सचिन तेंदुलकर आ रहे हैं। यूथ हॉस्टल में विद्यार्थियों का एक प्रतिनिधि मण्डल उनसे मिलने जायेगा। अक्षय! तुमको अपने विद्यालय की पत्रिका के लिए उनका एक साक्षात्कार लेना होगा। विद्यालय की ओर से परिचय पत्र तथा अनुमति पत्र की व्यवस्था कर दी जावेगी। कल दोपहर को तीन बजे यूथ हॉस्टल अवश्य पहुँचना है।’ मैं तो यह सुनते ही उछल पड़ा। घर आकर मैंने माँ को सारी बातें बताईं। खुशी के मारे मुझे रात भर नींद नहीं आई। मन में हवाई कल्पनाएँ करता रहा। प्रसिद्ध क्रिकेटर सचिन तेंदुलकर से मिलने की कल्पना ने ही मुझे रोमांचित कर दिया था।

दूसरे दिन विद्यालय में अध्यापक जी ने मुझको कार्यालय से साक्षात्कार लेने का अनुमति पत्र तथा विशेष पहचान पत्र दिलवा दिया और मैं समय से पहिले ही यूथ हॉस्टल पहुँच गया। वहाँ पर अपार भीड़ थी तथा विशेष सुरक्षा व्यवस्था। सब बड़ी उत्सुकता से सचिन जी के आने की प्रतीक्षा कर रहे थे कि एकाएक शोर सा उठा आ गए, आ गए हटो हटो सचिन आ रहे हैं और एकाएक मैंने देखा कि ठीक हमारे सामने स्टेज पर महान क्रिकेटर सचिन तेंदुलकर एक मोहक मुस्कान लिए खड़े हैं। मैं अभिभूत हो गया। छोटा कद, सुदृढ़ शरीर; धुंघराले बाल, मोहक मुस्कान और सबसे अधिक प्रभावशाली किन्तु निश्छल आँखें। मैं तो बस देखता ही रह गया।

क्या सच में मैं क्रिकेट के भगवान कहे जाने वाले सचिन को अपने सामने देख रहा हूँ। ‘रनों’ का पहाड़ खड़े करने वाले, मात्र 16 वर्ष की उम्र से ही बड़े-बड़े दिग्गजों की गेंदों की धुनाई करने वाले, हर मैच में एक नया रिकार्ड बनाने वाले जिसको छूने की अभी कोई कल्पना नहीं कर सकता, ऐसा सौ शतकों के महाशतक का रिकार्ड बनाने वाले मास्टर ब्लास्टर सचिन रमेश तेंदुलकर आज मेरे सामने थे। लोग उनसे तरह-तरह के प्रश्न पूछ रहे थे और मैं मन्त्रमुग्ध सा बस उनको देखे जा रहा था। वे कभी चंचलता से हँस देते थे तो कभी गम्भीर हो जाते थे।

ऐसा महान व्यक्तित्व और अहंकार का नामोनिशान नहीं। अचानक मेरी बारी आई। मैंने उनका अभिवादन किया और कहा “सर मैं आज स्वयं की बहुत सौभाग्यशाली समझता हूँ कि मुझे आपसे केवल तीन प्रश्न पूछने की अनुमति मिली है। मेरा पहला प्रश्न है’आपने मात्र 16 वर्ष की उम्र से अन्तर्राष्ट्रीय क्रिकेट खेलना शुरू कर दिया था। आप तब बच्चे ही थे, आपको वेस्टइंडीज, साउथ अफ्रीका के इतने लम्बे चौड़े खिलाड़ियों को बोलिंग करते देखकर एक क्षण को भी डर नहीं लगा’ प्रश्न सुनकर वे खुलकर हँसे और बोले-“तुम स्वयं अभी बच्चे हो और तुम्हारा प्रश्न बहुत अच्छा है। खेलते समय मेरा ध्यान केवल बाल पर ही होता है बालर के डीलडौल पर नहीं। तुमने सुना होगा, जो डर गया, सो मर गया।”

मैंने दूसरा प्रश्न किया-“सर महाशतक बनाना निश्चय ही आपके जीवन का अविस्मरणीय पल है, इसके अतिरिक्त ऐसा कौनसा पल है जो आपको हमेशा खेलने के प्रति प्रेरित करता रहता है।” सचिन ने उत्तर देने में एक भी क्षण नहीं लगाया और बोले-“वह दिन जब मैं सर डॉन ब्रैडमैन से मिला था, वह क्षण मुझे हमेशा क्रिकेट खेलने की निरन्तरता प्रदान करता है। इस क्षण को मैं कभी नहीं भूल सकता। डॉन ब्रैडमैन ने मुझको देखकर तथा मेरे कंधे पर हाथ रखकर कहा, तुम्हारे खेल में, मैं खुद को देखता हूँ। खुलकर खेलना-कभी रुकना मत।” सचिन ने कहा कि सर डॉन ब्रैडमैन क्रिकेट के महानतम खिलाड़ी हैं।

सचिन की डॉन ब्रैडमेन के प्रति श्रद्धा देखकर, बिना किसी घमंड के, मैं ही नहीं सभी विद्यार्थीगण अभिभूत हो गये तथा हॉल करतल ध्वनि से गूंज उठा। अब मैं अपने तीसरे तथा अंतिम प्रश्न, सचिन जी से पूछने जा रहा था–“सर यह प्रश्न मेरा नहीं बल्कि हम सभी की तरफ से है। क्रिकेट के मैदान पर आप अपनी हर उपलब्धि के बाद, आकाश की ओर देखकर तथा अपना बल्ला उठाकर किसको स्मरण करते हैं।”

हाँ, सर यदि इसका उत्तर नितांत व्यक्तिगत हो, तो कृपया मुझे क्षमा करें। सचिन इस प्रश्न को सुनकर गम्भीर हो गये तथा एक पल रुक कर बोले ‘इस प्रश्न को पूछने की जिज्ञासा सभी की रही होगी, किन्तु इस प्रश्न को पूछकर तुमने अच्छा किया। आज मैं आपको बताता हूँ, मैदान में किसी भी उपलब्धि के बाद सबसे पहले मैं आसमान में ऊपर देखकर ईश्वर का आभार व्यक्त करता हूँ कि उन्होंने मुझको यह उपलब्धि दिलाई। फिर मैं अपने पिताजी को प्रणाम करता हूँ कि आज मैं इस मुकाम पर उनकी प्रेरणा से ही पहुँचा हूँ।

मैं याद करता हूँ वह क्षण जब बचपन में मेरे पिताजी ने ही मुझे बल्ला पकड़ना सिखाया था। और हाँ, मैं अनन्त आकाश को देखकर खुद को याद दिलाता हूँ कि सितारों से आगे जहाँ और भी है……… अतः आकाश की तरह आपका लक्ष्य भी असीम होना चाहिए।’ सचिन के चुप होते ही सारा हॉल स्तब्ध था, फिर तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा। सचिन के उत्तर की गहराई ने सबके मन को हर लिया था। साक्षात्कार का समय समाप्त हो चला था। मैंने सचिन का ऑटोग्राफ लिया। इतने अच्छे प्रश्न पूछने पर सबने मुझे बधाई दी। विद्यालय पहुंचनेपर मेरे सब साथियों ने मुझे घेर लिया। अचानक हमारे प्रधानाचार्य जी ने मुझे अपने कार्यालय में बुलवाया तथा मुझे शाबासी दी। अन्य अध्यापकों ने भी मुझे शाबासी दी। मैंने ईश्वर को धन्यवाद दिया कि उन्होंने मुझे ऐसे महान व्यक्तित्व से भेंट करने का अवसर प्रदान किया।

(iii) ऊँचे लक्ष्य की प्राप्ति के लिए माता-पिता तथा अध्यापकों द्वारा बच्चों पर डाला जाने वाला दबाव उचित (पक्ष) मेरा मानना है कि ऊँचे लक्ष्य की प्राप्ति के लिए माता-पिता तथा अध्यापकों द्वारा बच्चों पर डाला जाने वाला दबाव उचित है तथा बच्चों के विकास के लिए ही है।

‘लक्ष्यहीन है जीवन जिसका,
थाली के बैंगन सा लुढ़कता।
खाता पीता और मौज उड़ाता,
पशु सदृश है जीता मरता।

कवि की उपरोक्त पंक्तियाँ सत्य ही हैं क्योंकि लक्ष्यहीन जीवन निरर्थक है। अब प्रश्न यह है कि जीवन के लक्ष्य को निर्धारित कौन करेगा ? क्या एक दस, बारह या चौदह वर्ष का बालक, या जीवन के अनुभवों के धनी मातापिता और अध्यापक ? हम बचपन से ही सीखते हैं – ‘मातृदेवो भव, पितृ देवोभव, आचार्य देवो भव।’ हमारे देवतुल्य माता-पिता हमको अच्छा मानव बनने के संस्कार देते हैं, उचित लक्ष्य को चुनने में हमारी सहायता करते हैं और हमको उचित राह दिखलाते हैं। माता-पिता ही हैं जो हमारी क्षमताओं को, हमारी योग्यता को बेहतर रूप में जानते हैं। अध्यापक हमारे व्यवहार, विद्यालय में हमारी शैक्षिक प्रगति, पाठ्य सहगामी क्रियाओं में हमारी सक्रियता को देखकर समझ लेते हैं कि हमारी रुचि किस क्षेत्र में है ? हम किस क्षेत्र में अपना उत्कृष्ट प्रदर्शन कर सकते हैं? वे हमारा लक्ष्य तो हमको बतलाते ही हैं हमको लक्ष्य तक पहुँचाने के लिए कभी प्यार से, कभी डाँट से तो कभी ताड़ना से हमको समझाते हैं। उनके इन क्रिया कलापों को उनका अनुचित दबाव नहीं माना जाना चाहिए।

बालक अपने जीवन में सब कुछ अपने अनुभव से ही नहीं सीखता बल्कि बहुत कुछ बड़ों के अनुभवों से सीखता है जो उसे ‘यह करो-यह मत करो’ के निर्देश के रूप में प्राप्त होता है। आग जलाती है’ इस तथ्य को जानने के लिए आग में हाथ जलाने की कोई आवश्यकता नहीं बल्कि माँ का निर्देश ही पर्याप्त है। माँ की वर्जना उस बालक पर डाला जाने वाला दबाव नहीं बल्कि बालक को आग से बचाने की भावना है। यही बात जीवन का लक्ष्य निर्धारित करने के विषय में भी लागू होती है। एक 5-6 वर्ष का बालक अधिकतर अपनी अध्यापिका, माँ या पिताजी जैसा बनना चाहता है। जैसे-जैसे वह बड़ा होता जाता है उसकी रुचि बदलती जाती है। कभी वह डाक्टर बनना चाहता है, कभी इंजीनियर, कभी विमान चालक, कभी विमान परिचारिका, कभी टी. वी. एंकर, कभी गायक तो कभी एक्टर। वह अपने आसपास के वातावरण तथा अपने मित्रों, सहपाठियों से प्रभावित होकर अपना लक्ष्य निर्धारित करता है।

देखा गया है कि प्रायः विद्यार्थी अपने साथियों के साथ ही अपने लिए भी वे ही विषय चुन लेते हैं, किन्तु बाद में उतना अच्छा न कर पाने पर निराश भी होते हैं और अपने निर्णय पर पछताते भी हैं पर ‘अब पछताए होत क्या जब चिड़ियाँ चुग गईं खेत।’ यही वह समय है जब माता-पिता व अध्यापक उनको उनकी क्षमता व रुचि के अनुरूप ऊँचे लक्ष्य के चुनाव में सहायता देते हैं। उनको भटकने से बचाने के लिए ही वे उस पर दबाव डालते हैं कि वह सही लक्ष्य चुने। यह सब दबाव अनुचित कदापि नहीं कहा जा सकता। – कुछ लोगों का मानना है कि अधिकतर माता-पिता बच्चों को वह व्यवसाय या कार्यक्षेत्र चुनने को विवश करते हैं जो कभी स्वयं उनकी रुचि का था और वे उसमें असफल रहे।

वे अपने बालक में स्वयं का जीवन जीना चाहते हैं किन्तु आजकल के माता-पिता स्वप्नदर्शी मात्र नहीं हैं; वे वास्तविकताओं को समझते भी हैं तथा उनका सामना भी करना जानते हैं। एक पिता चाहे वह स्वयं सफल चिकित्सक हो अपने उस बच्चे को चिकित्सक बनाने के लिए कभी दबाव नहीं डालेगा जिस बच्चे को खून देखकर ही घृणा होने लगे—वह असहज हो उठे। आज ज्ञान के विस्फोट का युग है। सम्भावनाओं के अगणित द्वार खुले हैं। इसलिए माता-पिता भी अपने बच्चों को उसकी रुचि व क्षमता के अनुसार ऊँचे लक्ष्य चुनने की स्वतन्त्रता भी देते हैं तथा सहायता भी करते हैं। अनुशासित जीवन जीने का प्रशिक्षण देने को, परिश्रम करने के लिए उन्हें प्रेरित करने को उन पर दबाव डालना कदापि नहीं कहा जा सकता। जितने ऊँचे लक्ष्य होते हैं उन्हें पाने के लिए उतना ही परिश्रम करना पड़ता है।
‘उद्यमेन हि सिध्यन्ति कार्याणि न मनोरथैः।

सोने को जितना तपाया जाता है वह उतना ही चमकता है-खरा माना जाता है। इसीलिए माता-पिता अध्ययन काल में अपने बच्चों को अधिक परिश्रम करने को प्रेरित करते हैं जिससे वे भविष्य में एक सफल व्यक्ति बन सुख सुविधा सम्पन्न आरामदायक सहज जीवन व्यतीत करें और प्रसिद्धि पाकर अपने माता-पिता व देश का नाम ऊँचा करें। उपरोक्त लिखित विचारों के समापन में मैं यही कहना चाहूँगा कि माता-पिता व अध्यापकों की वर्जनाओं तथा निर्देशों को सकारात्मक, प्रेरणात्मक रूप में ही देखना चाहिये न कि अनुचित दबाव मानकर नकारात्मक रूप में।

(iv) जान बची तो लाखों पाये।
मोहन एक साहसी व बुद्धिमान लड़का था। वह स्काउट गाइड दल का सदस्य था। एक बार स्काउट गाइड दल ने गर्मियों में शिमला जाने का कार्यक्रम बनाया। मोहन को सो जाना ही था। शिमला में सब लोगों ने तारादेवी मन्दिर में जाने का कार्यक्रम बनाया। ऊँची चढ़ाई थी, दल के सदस्यों को ट्रैकिंग का अभ्यास भी करना था। सब निर्देशानुसार चलने लगे। सब तो बताए हुए रास्ते पर ही जा रहे थे परन्तु मोहन व प्रदीप ने कुछ अलग हटकर करने की ठानी। उन दोनों ने एक पगडंडी वाला रास्ता चुना जो सुनसान सा था। जंगल के बीच में जाने का आनन्द ही कुछ और होता है यह सोचकर वे उस रास्ते पर चलने लगे। प्रारम्भ में ही उनको एक आदमी सिर पर लकड़ी का गठ्ठर लेकर जाता हुआ मिला।

वह उन दोनों को देखकर कहने लगा-“अरे भइया आप दोनों यहाँ कहाँ जा रहे हैं ? यह रास्ता तो सुनसान है। ” मोहन बोला, “हम तारा देवी जा रहे हैं यह छोटा रास्ता है न।” उस व्यक्ति ने उत्तर दिया कि “रास्ता तो छोटा है पर आगे जंगल बहुत घना है, कुछ खतरनाक भी।” “कोई बात नहीं। न तो हम जंगल से डरते हैं न खतरों से” शान बघारते हुए मोहन ने कहा। वह व्यक्ति अपनी राह चला गया और इन दोनों मित्रों ने कुछ रोमांचक करने की चाह में अपनी राह पकड़ी। कुछ देर तक दोनों गाना गाते मस्ती करते चलते रहे। आगे जाकर वास्तव में जंगल इतना घना होता जा रहा था कि कुछ दूर का स्पष्ट नहीं दीख पड़ता था। उधर पहाड़ों पर बादल भी घिर आए थे। अंधकार सा छाने लगा। रास्ते में कोई पक्षी तक नहीं मिल रहा था। रास्ते की खामोशी तथा निर्जनता ने दोनों को थोड़ा-थोड़ा डराना शुरू कर दिया था। बीच-बीच में दो एक गुफाएँ भी पड़ीं। लगता था किसी जानवर की गुफा हो। अब तो दोनों के चेहरे पर हवाइयाँ उड़ने लगीं।

वे सोच रहे थे उन्होंने यहाँ दल से अलग आकर वास्तव में गलती की है। उन्हें लगा कि वे शायद भटक भी गए हैं पर पेड़ों पर जब कहीं उन्हें माता की चुनरी का कपड़ा दिखता या जय माता दी लिखा दिखता तब तो उन्हें बड़ा सहारा मिलता। उनको विश्वास हो जाता कि वे ठीक रास्ते पर जा रहे हैं। वे दोनों जा ही रहे थे कि एक तरफ से भागता हुआ एक हिरन आया और घबराया सा दौड़ता चला गया और एक जंगली कुत्ता उसके पीछे-पीछे दौड़ता चला गया। अब वे घबराने लगे। यदि कुत्ता उनके पीछे पड़ जाता तो? उन्होंने निश्चय किया लौट लिया जाय ? पर किस रास्ते से? बीच-बीच में रास्ता विभाजित भी होता था। किससे पूछे ? कहाँ जायँ। इस चिन्ता में आगे बढ़ रहे थे कि उनको लगा कि आगे-आगे एक आदमी कम्बल ओढ़े हुए जा रहा है।

प्रदीप ने मोहन से कहा “जरूर यह कोई साधु-वाधु होगा जो मन्दिर की ओर जा रहा है चलो इसी का साथ पकड़ते हैं।” मोहन भी सहमत हो गया। वे लम्बे लम्बे कदम उठाकर दुगनी शक्ति के साथ उस कम्बल ओढ़े हुए आदमी का पीछा करने लगे। वह आदमी उनसे थोड़ी ही दूरी पर था। वे उसको आवाज देकर रोकना ही चाहते थे कि वह आदमी तो दोनों हाथ जमीन पर रखकर जानवरों की तरह चलने लगा। अब तो वे पहले थोड़ा सा रुके फिर चुपचाप आगे बढ़े। थोड़ा पास आने पर डर के कारण उनकी घिघ्यी बँध गई। अरे! वे जिसको कम्बल ओढ़े हुए कोई साधु बाबा समझ रहे थे वह तो रीछ या भालू था। अब तो उन्होंने आव देखा न ताव पीछे मुड़ कर भागना शुरू किया।

भागते-भागते उस रास्ते पर पहुँच गए जहाँ उनको वह लकड़हारा मिला-था। पीछे मुड़ कर देखा-भालू उनका पीछा तो नहीं कर रहा ? भालू तो नहीं था पर उनका साहस बिल्कुल जबाव दे चुका था। उन्होंने फिर भागते हुए नीचे उतरना शुरू किया। उन्होंने देखा कि उनका दल वहाँ खड़ा था। प्रदीप व मोहन को अपने साथ न पाकर वे लोग थोड़ी दूर से ही वापस आ गए थे और उनको ढूँढ रहे थे। भाग कर वे अपने मित्रों से लिपट गए। साथियों ने उन्हें सांत्वना दी तब उन दोनों ने पूरी बात बताई और माफी मांगी। यह सब सुनकर दलनायक ने कहा कोई बात नहीं—’जान बची तो लाखों पाए’ लौट के बुद्धू घर को आए, अन्य सभी साथी साथ-साथ जोर से बोल उठे और खिलखिलाकर हँस पड़े।

(v) चित्र प्रस्ताव
मैं राष्ट्रीय स्वयं सेवी संस्था की सदस्या हूँ। कुछ माह पूर्व मुझे अपने दल के साथ ग्रामीण व आदिवासी बाहुल्य स्थानों में जाने का अवसर मिला। उद्देश्य था वहाँ जाकर वहाँ की स्त्रियों को स्वच्छता, स्वास्थ्य व रोगों की रोकथाम के विषय में बताना। वहाँ की गरीबी को देखकर हम व्यथित हो उठे। वहाँ हमारा परिचय एक महिला से हुआ जिसका नाम था ‘सुनहरी’। अपनी कर्मठता व जिजीविषा से वह हमारे लिए प्रेरणा का स्रोत बन गई। हमारे हर कार्यक्रम में वह दर्शक के रूप में हमारे साथ रहती थी।

उसकी सक्रियता हमारे लिए आकर्षण का केन्द्र थी। एक बार बहुत आग्रह करके हमको अपने घर ले गई। घर क्या था—मिट्टी, भूसे पत्तों से बना एक कमरा। कमरे के एक कोने में एक चूल्हा था नाम मात्र को दो-चार बर्तन । रोशनी के लिए एक ढिबरी। सुनहरी शायद उसी समय जंगल से लकड़ियाँ बीन कर लाई थी जो उसने चूल्हे के पास ही रख दी थीं। वहाँ पर अँधेरे में भी सुनहरी के निर्मल हास का उजाला था। मुस्कराते हुए उसने हमारा स्वागत किया। अपने अभावों की एक शिकन तक उसके माथे पर न थी। वह हमसे चाय पीने का आग्रह करने लगी। उसके आत्मीय आग्रह को टालना हमारे वश में न था। उसने मिट्टी से लीपे हुएं चूल्हे में कुछ लकड़ियाँ रख दीं और माचिस से आग लगा दी। फुकनी से फूंक कर उस आग की लौ को तेज किया और फटाफट एक भगोने में चाय बनाई। पता नहीं वह कहाँ से लाई थी पर एक साफ से कप में उसने पकड़ सँड़सी से भगोना पकड़ कर चाय छानी और हमारे सामने रख दी।

हमें आश्चर्य तो तब हुआ जब उसने पार्ले जी के बिस्कुट का एक पैकेट भी हमारे सामने नाश्ते के रूप में रख दिया। वह भले ही अनपढ़ थी पर शायद इतनी व्यावहारिकता तो उसमें थी ही कि मेहमानों का स्वागत किस प्रकार करना चाहिए वह जानती थी। इतने कम साधनों में वह कैसे गुजारा करती है पूछने पर उसने बताया कि वह लकड़ियाँ काट कर या बीनकर लाती है साथ ही जंगल से कुछ पत्ते भी बीन लाती है। लकड़ियों में से कुछ अपने प्रयोग को रखती है बाकी लकड़ियों को वह दूर 5 कोस पैदल जा कर एक गाँव में बेच देती है। वह इकट्ठे कर लाये गए पत्तों से पत्तलें और दोने बनाती है तथा वहीं गाँव में बेच देती है और अपनी जरूरत भर का सामान वह वहीं से खरीद लाती वहाँ पर उसके मधुर व्यवहार के कारण कुछ घर बंध गए हैं जहाँ अतिरिक्त काम करने पर उसे खाने पीने का कुछ सामान तथा वस्त्रादि प्राप्त हो जाते हैं।

कुछ शर्माते हुए उसने बताया कि वह हम लोगों को अपने यहाँ चाय पीने बुलाना चाहती थी इसीलिए वह वहाँ से चाय की पत्ती, चीनी ही नहीं बिस्कुट भी ले आई थी। चाय के लिए दूध वह ग्वाले से लाई थी बदले में एक सप्ताह तक वह ग्वाले की गायों को नहलाएगी। उसका प्रेम, स्वाभिमान तथा कर्मठता देख हम अभिभूत हो गए। हमने निश्चय किया कि उसकी प्रतिभा को हम व्यर्थ न जाने देंगे। हमने उसको प्रशिक्षित किया। उसने अतिशीघ्र ही सब बातें सीख लीं। हमने भी आपस में विचार विमर्श करके उसी गाँव में उसकी नियुक्ति वैतनिक स्वयंसेविका के रूप में करा दी। हमको विश्वास है कि वह एक बहुत अच्छी स्वयंसेविका तथा कार्यकर्ती सिद्ध होगी तथा अपने परिश्रम, बुद्धिमत्ता तथा व्यवहार से गाँव वालों के जीवन को एक नई दिशा देगी। सुनहरी ने अपनी कर्मठता से अपनी प्रतिभा को जंगल के पत्तों में खोने से बचा लिया और उसके जीवन को भी एक नई दिशा मिली। सुनहरी का जीवन हमें प्रेरणा देता है और यह कहने को विवश करता है –

जितने संकट में रहकर ही,
जिनका जीवन सुमन खिला।
गौरव गन्ध उन्हें उतना ही
यत्र तत्र सर्वत्र मिला।

Question 2.
Write a letter in Hindi in approximately 120 words on any one of topics given below :
निम्नलिखित में से किसी एक विषय पर हिन्दी में लगभग 120 शब्दों में पत्र लिखिए [7]
(i) छात्रावास में रहने वाली अपनी छोटी बहन को फैशन की ओर अधिक रुझान न रख, ध्यानपूर्वक पढ़ाई करने की सीख देते हुए पत्र लिखिए।
(ii) आपके नगर में एक ‘विज्ञान-कार्यशाला’ का आयोजन किया जा रहा है। इस कार्यशाला के संयोजक को पत्र लिखकर बताइए कि आप भी इसमें सम्मिलित होना चाहते हैं।
Answer:
(i) छोटी बहन को पत्र

4, प्रेम नगर
आगरा।
दिनांक : 15 अप्रैल 2012

प्रिय सुनीति,
मधुर स्नेह!
हम सब यहाँ पर सकुशल हैं तथा आशा करती हूँ तुम भी छात्रावास में अपनी सहेलियों के साथ स्वस्थ व सानन्द होगी। मुझे परसों तुम्हारा पत्र भी मिला था और फेसबुक पर मैंने तुम्हारे शिमला के फोटो भी देखे, जिसमें तुम अपनी कक्षा के साथ पिकनिक पर गई हो। पत्र के द्वारा तुम्हारे स्वास्थ्य का, तुम्हारी पढ़ाई का तथा अन्य गतिविधियों का हाल पता लगा। इस बार वार्षिक परीक्षा में तुम्हारे अंक उतने अच्छे नहीं आए हैं जितनी कि हम सबको आशा थी। मैं, पिताजी व माताजी इस विषय पर चर्चा कर रहे थे। मुझे ऐसा लगता है कि अब तुम्हारा ध्यान पढ़ाई से अधिक फैशन, रहन-सहन पर अधिक जा रहा है।

हाँ सुनीति, मैं ऐसे नहीं कह रही हूँ। फेसबुक पर मैंने जितने तुम्हारे फोटो देखे हैं उससे मुझे अनुमान हो रहा है। ग्रुप फोटो में तुम्हारे कपड़े, बालों की बनावट तथा खड़े होने के तरीके को देखकर छात्रा कम मॉडल अधिक लग रही हो। बहन, यह उम्र पढ़ने की है – दिखावा करने की नहीं। विद्यार्थी होने के नाते तुम्हें अपनी पढ़ाई पर अधिक तथा फैशन पर कम ध्यान देना चाहिए। फैशन के चक्कर में तुम घर से ब्रांडेड कपड़े, जूते इत्यादि की माँग करती हो – कभी भी किताबों आदि की नहीं।

बहन, तुम्हें मालूम है कि अपने माता पिता की हम ही आशा हैं तथा हम ही भविष्य। इसलिए प्यारी बहन, अभी तुम अपना पूरा ध्यान पढ़ाई में लगाओ। फैशन के लिए पूरी उम्र पड़ी है पर यह समय अगर बीत गया तो वापस नहीं आयेगा। यदि तुमको फैशन के क्षेत्र में ही काम करना है तो भी. उसमें अव्वल रहने में भी ऊँची शिक्षा ही काम आयेगी। इसलिए आशा है तुम अपना पूरा ध्यान फिर से पढ़ाई में लगाओगी। हम सब तुम्हारे शुभेच्छु हैं तथा तुम्हारी सफलता की कामना करते हैं। माताजी पिताजी का तुमको तथा तुम्हारी मित्रों को आशीर्वाद। मेरा सबको नमस्कार कहना तथा अपनी वार्डन से विशेष रूप से मेरा अभिवादन कहना। मुझे आशा है कि इस पत्र को बार-बार पढ़ कर तुम अपने विषय में उचित निर्णय लोगी। मेरा तुमको बारम्बार स्नेह व आशीष।

तुम्हारी बहन
मुग्धा

(ii) विज्ञान-कार्यशाला के संयोजक को पत्र

सेवा में
संयोजक
विज्ञान-कार्यशाला
विज्ञान चेतना केन्द्र
एम. जी. रोड,
आगरा।
विषय : विज्ञान कार्यशाला में सम्मिलित होने हेतु निवेदन।
महोदय,
नगर में प्रतिष्ठित समाचार पत्र ‘अमर उजाला’ में प्रकाशित एक समाचार के माध्यम से मुझको ज्ञात हुआ है कि हमारे नगर में एक ‘विज्ञान कार्यशाला’ का आयोजन किया जा रहा है, जिसके संयोजक आप हैं। मैं कक्षा बारह विज्ञान का छात्र हूँ। मुझको विज्ञान में बहुत रुचि है। मैं इन कार्यशालाओं की उपयोगिता के विषय में जानता हूँ कि इनसे हमको कितने नये तथ्यों का ज्ञान होता है तथा रोजाना के कामों में आने वाले कितने ही वैज्ञानिक उपकरणों के विषय में भी हमको ज्ञात होता है। मैंने जबसे समाचार पत्र में इस कार्यशाला के विषय में पढ़ा है मैं तभी से इसमें सम्मिलित होने के लिए बहुत उत्सुक हूँ। आप कृपया मुझे निम्नलिखित पते पर सूचना देने का कष्ट कीजिए कि इस कार्यशाला में सम्मिलित होने के लिए मुझको क्या शुल्क देना होगा ? कहाँ पर प्रवेश पत्र मिलेगा ? तथा इस कार्यशाला का स्थान व समय क्या है ? यदि आप मुझको इस कार्यशाला में सम्मिलित होने का अवसर देंगे तो मैं आपका अत्यन्त आभारी रहूँगा।
सधन्यवाद!

भवदीय
महेश शर्मा
4, प्रेम नगर,
आगरा।

दिनांक : 16 अप्रैल, 2012

Question 3.
Read the passage given below and answer in Hindi the questions that follow, using your own words as far as possible:
निम्नलिखित गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़िये तथा उसके नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर हिन्दी में लिखिए। उत्तर यथासम्भव आपके अपने शब्दों में होने चाहिए
एक चोर किसी मन्दिर का घण्टा चुराकर ले गया था। वन में जाते हुए उसका सामना बाघ से हो गया और चोर बाघ के द्वारा मारा गया। उसी वन में वह घण्टा बन्दरों के हाथ में पड़ गया। वन बहुत घना था। बन्दर झाड़ियों के अन्दर रहते थे। जब उनकी मौज होती, वे घण्टा बजाते।

घण्टे की आवाज सुनकर समीप के नगर में यह अफवाह फैल गयी कि जंगल में भूत रहता है और उसका नाम घण्टाकरण है। उसके कान घण्टे के समान हैं, जब वह हिलता है, तो कानों से घण्टे की आवाज आती है। इस अफवाह से लोग ऐसे भयभीत हुए कि जंगल की ओर भूलकर भी कोई न जाता था। सब जंगल से दूर-दूर ही रहते थे। जंगल से लकड़हारे लकड़ियाँ न लाते थे, चरवाहे जंगल में पशुओं को चराने न ले जाते थे। किसी में इतना हौसला न था कि जंगल में जाने का प्रयत्न कर पाता।

इस प्रकार सारे का सारा जंगल किसी भी काम में न आकर कल्पित घण्टाकरण भूत की राजधानी बन गया। अब तो राजा को भी बड़ी चिन्ता हुई। उसने सयानों और जादूगरों को इकट्ठा किया और कहा कि भाई इस भूत को जंगल से निकालो, वरना सारा जंगल हजारों रुपये की सालाना आमदनी बेकार हाथ से जा रही है।

सब लोगों ने अपने-अपने उपाय करने प्रारम्भ किए। पण्डितों ने चण्डी का जाप किया, हनुमान चालीसा का पाठ किया। मुल्लाओं ने कुरान का पाठ आरम्भ किया। किसी ने भैरों को याद किया, किसी ने काली माता की मन्नत की, किसी ने पीर-पैगम्बर को मनाया, किसी ने जादू-टोना किया। इस पर भी घण्टाकरण किसी के काबू में न आया। घण्टे का शब्द सदा की भाँति सुनाई देता रहा और लोग समझते रहे कि घण्टाकरण घण्टा बजा रहा है।

तभी एक चतुर मनुष्य उधर कहीं से आ निकला। वह भूत-प्रेत, चण्डी-मुण्डी, पीर-पैगम्बर, जादू टोने आदि कपोल-कल्पित मिथ्या बातों पर विश्वास नहीं करता था। उसने विचारा कि वन में हो न हो कोई विशेष बात होगी। संभव है कि वन में डाकू रहते होंगे और उन्होंने वन को अपने रहने के लिए सुरक्षित बनाने को यह पाखण्ड रचा हो या कहीं बन्दरों के हाथ में घण्टा न पड़ गया हो। ऐसा दृढ़ निश्चय कर वह चतुर मनुष्य साधु का वेश धर कर जंगल में घुसा। अन्दर जाकर देखा तो उसने अपने अनुमान को सही पाया। लौटकर उसने नगर निवासियों से कहा, “भाइयो ! मैंने भूत को पकड़ने का उपाय विचार लिया है। आप लोग मुझे एक गाड़ी भुने चने दें, तो मैं कल ही भूत को पकड़ लेता हूँ।”

नगर के निवासी और राजा भूत के नाश के लिए सब कुछ करने को तैयार थे, झटपट सब सामान इकट्ठा कर दिया। चतुर मनुष्य ने जंगल में जाकर चने बन्दरों के आगे डाल दिए। इधर सब बन्दर चने खाने में लगे, उधर उसने घण्टा उठा कर नगर की राह ली। अब क्या था, सारे नगर में और राजसभा में उस चतुर मनुष्य को बड़ा आदर मिला, फिर उसने सब भेद खोलकर लोगों के मिथ्या विश्वास को तोड़ा। उन्हें भ्रम के भूत से मुक्ति दिलाई। . इस कहानी के समान अनेक बातों के भ्रम में पड़कर मनुष्य ने भूत-प्रेत, जादू-टोना आदि अनेक प्रकार की कल्पनाएँ कर ली हैं। लोग भय और मिथ्या विश्वास के कारण वास्तविकता का पता नहीं लगाते हैं और झूठे उपाय कर-करके थकते हैं। वास्तव में भूत-प्रेत आदि यह सब ठग-लीला है। जादू-टोने सब लूटने-खाने के बहाने हैं। इनसे सदा बचने में ही मानव की भलाई है। … मिथ्या विश्वास से ही मनुष्य तरह-तरह के कष्टों में पड़ जाता है। अत: यथासंभव मिथ्या विश्वास दूर करने का प्रयत्न करना चाहिए।
(i) नगर में क्या अफवाह फैल गई थी और इस अफवाह का क्या कारण था ? [2]
(ii) जंगल किसकी राजधानी बन गया था? इससे नगर निवासियों पर क्या प्रभाव पड़ा? [2]
(iii) राजा की चिन्ता का क्या कारण था ? भूत को जंगल से निकालने के क्या-क्या उपाय किए गए ? [2]
(iv) चतुर मनुष्य का क्या अनुमान था ? उसने नगर निवासियों को भूत से किस प्रकार मुक्ति दिलाई ? [2]
(v) प्रस्तुत गद्यांश से आपको क्या शिक्षा मिली? [2]
Answer:
(i) नगर में यह अफवाह फैल गई थी कि जंगल में एक भूत रहता है, जिसका नाम घण्टाकरण है। उसके कान घण्टे के समान हैं, जब वह हिलता है, तो कानों से घण्टों की आवाज आती है। इस अफवाह का कारण यह था कि जंगल में से घण्टा बजने की आवाज आती थी। यह घण्टा वन में रहने वाले बन्दरों के द्वारा कभी-कभी बजाया जाता था जिनको यह जंगल में पड़ा मिला। इस घण्टे को एक चोर ने मंदिर से चुराया था और वह उसे लेकर वन के रास्ते जा रहा था जहाँ उसे एक बाघ ने मार दिया था। वही घण्टा बन्दरों के हाथ पड़ गया था।

(ii) जंगल उस कल्पित घंटाकरण भूत की राजधानी बन गई थी। जिसकी कल्पना लोगों ने कर ली थी। इससे नगरवासियों पर यह प्रभाव पड़ा कि वे बहुत भयभीत हो गए थे कि सब जंगल से दूर ही रहते थे। न तो लकड़हारे ही जंगल से लकड़ियाँ लाते थे और न ही चरवाहे जंगल में पशुओं को चराने ले जाते थे।

(iii) घण्टाकरण भूत के भय से कोई भी व्यक्ति जंगल की ओर नहीं जाता था और इससे राजा को हजारों रुपये की सालाना आमदनी का नुकसान हो रहा था। इसलिए राजा चिन्तित हो गया। उसने भूत को जंगल से बाहर निकालने के लिए सयानों और जादूगरों को आदेश दिया। सबने अपने-अपने उपाय शुरू कर दिए। पंडितों ने हनुमान चालीस का पाठ किया, चण्डी का जाप किया, भैरों को याद किया और काली माता की मन्नत की। किसी ने पीर पैगम्बर को मनाया तो जादूगरों ने जादू टोना किया। किन्तु घण्टे का शब्द पूर्ववत सुनाई देता रहा और लोग समझते रहे कि घण्टाकरण ही घण्टा बजा रहा है।

(iv) एक चतुर मनुष्य था जो भूत-प्रेत, पीर-पैगम्बर, जादू टोने आदि पर विश्वास नहीं करता था। उसने अनुमान लगाया कि या तो जंगल में डाकू रहते होंगे और उन्हीं ने अपने छिपने के स्थान को सुरक्षित बनाने के लिए यह अफवाह फैलाई है या कोई घण्टा बन्दरों के हाथ में पड़ गया है। उसने नगरवासियों को भूत से मुक्ति दिलाने के लिए पहले अपने अनुमान को पक्का किया। साधु के वेश में वन में जाकर उसने देखा और अपने अनुमान को सही पाया। उसने नगरवासियों से एक गाड़ी चने लिए और वन में जाकर वे चने बन्दरों के आगे डाल दिए। बन्दर चने खाने में लग गए और वह घण्टा उठाकर नगर में चला आया। उसने नगरवासियों के सामने घण्टे की आवाज का भेद खोला और उन्हें भ्रम के भूत से मुक्ति दिलाई।

(v) प्रस्तुत गद्यांश को पढ़कर हमको यह शिक्षा मिली कि हमको भय, मिथ्या विश्वास तथा भ्रम के चक्कर में न पड़कर हर घटना को तार्किक दृष्टि से देखना चाहिए। भूत प्रेत, टोने टोटके के चक्कर में न पड़कर सोच
विचार कर निर्णय लेना चाहिए। हमको जहाँ तक हो सके मिथ्या विश्वास दूर करने की कोशिश करनी चाहिए।

Question 4.
Answer the following according to the instructions given :
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर निर्देशानुसार लिखिए
(i) निम्न शब्दों से विशेषण बनाइए : [1]
अनुभव, पूजा।
(ii) निम्न शब्दों में से किसी एक शब्द के दो पर्यायवायी शब्द लिखिए : [1]
भाग्य, पवित्र।
(iii) निम्न शब्दों में से किन्हीं दो शब्दों के विपरीतार्थक शब्द लिखिए : [1]
पुत्री, घमंड।
(iv) निम्नलिखित मुहावरों में से किसी एक की सहायता से वाक्य बनाइए : [1]
मुँह में पानी भर आना, टाँग अड़ाना।
(v) भाववाचक संज्ञा बनाइए : [1]
सेवक, बच्चा।
(vi) कोष्ठक में दिए गए निर्देशानुसार वाक्यों में परिवर्तन कीजिए :
(a) वह दुश्मन की सेना पर टूट पड़ा। [1]
(‘टूट पड़ा’ के स्थान पर हमला किया’ का प्रयोग कीजिए)
(b) विद्यार्थी पुस्तक पढ़ रहा है। [1]
(बहुवचन में बदलिए)
(c) अन्ना हजारे ने सरकार का लोकपाल बिल मानने से इन्कार कर दिया। [1]
(रेखांकित शब्द का विपरीतार्थक शब्द लिखिए। ध्यान रखें वाक्य, का अर्थ न बदले)
Answer.
(i) विशेषण शब्द –
अनुभव – अनुभवी
पूजा – पूजनीय

(ii) पर्यायवाची शब्द –
पुत्री-दुहिता, सुता
घमंड – गर्व, अभिमान –

(iii) शब्दों के विपरीत शब्द –
अपमान-सम्मान अमावस्या-पूर्णिमा उत्थान-पतन निन्दा-प्रशंसा

(iv) मुहावरों का वाक्य प्रयोग मुँह में पानी भर आनावाक्य प्रयोग रसगुल्लों का थाल देखकर मोहन के मुँह में पानी भर आया।
टाँग अड़ाना –
वाक्य प्रयोग – सोहन अपने सौतेले भाई की खुशी सहन नहीं कर पाता। हमेशा उनके बनते काम में अपनी टाँग अड़ाता रहता है।

(v) भाववाचक संज्ञा में परिवर्तन –
सेवक – सेवा
बच्चा – बचपन

(vi) कोष्ठक में दिए गए निर्देशानुसार वाक्यों में परिवर्तन –
(a) उसने दुश्मन की सेना पर हमला किया।
(b) विद्यार्थी पुस्तकें पढ़ रहे हैं।
(c) अन्ना हजारे ने सरकार का लोकपाल बिल स्वीकार नहीं किया।

Section – B (40 Marks)

  • गद्य संकलन : Out of Syllabus
  • चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य : Out of Syllabus
  • एकांकी सुमन : Out of Syllabus
  • काव्य-चन्द्रिका : Out of Syllabus

ICSE Class 10 Hindi Previous Years Question Papers

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