ICSE Hindi Previous Year Question Paper 2011 Solved for Class 10

  • Answers to this Paper must be written on the paper provided separately.
  • You will not be allowed to write during the first 15 minutes.
  • This time is to be spent in reading the Question Paper.
  • The time given at the head of this Paper is the time allowed for writing the answers.
  • This paper comprises of two Sections – Section A and Section B.
  • Attempt all questions from Section A.
  • Attempt any four questions from Section B, answering at least one question each from the two books you have studied and any two other questions.
  • The intended marks for questions or parts of questions are given in brackets [ ].

SECTION – A  [40 Marks]
(Attempt all questions from this Section)

Question 1.
Write a short composition in Hindi of approximately 250 words on any one of the following topics – [15]
निम्नलिखित विषयों में से किसी एक विषय पर हिन्दी में लगभग 250 शब्दों में संक्षिप्त लेख लिखिए
(i) प्रात:कालीन भ्रमण से क्या-क्या लाभ हैं ? क्या आप प्रातः भ्रमण के लिए जाते हैं ? बताइए कि प्रात:काल का दृश्य कैसा होता है ?
(ii) कल्पना कीजिए कि आप ‘कौन बनेगा करोड़पति’ में पाँच करोड़ रुपए जीत गए हैं। उससे आपको कोई तीन कार्य करने हैं। आप कौन-कौन से कार्य करेंगे, जिससे आपको अधिकतम संतुष्टि प्राप्त हो सके।
(iii) ‘असफलता ही सफलता का आधार है’ विषय के पक्ष या विपक्ष में अपने विचार प्रकट कीजिए।
(iv) एक कहानी लिखिए जिसका आधार निम्नलिखित उक्ति हो –
“वही मनुष्य है कि जो मनुष्य के लिए मरे ।”
(v) नीचे दिये गये चित्र को ध्यान से देखिए और चित्र को आधार बनाकर वर्णन कीजिए अथवा कहानी लिखिए, जिसका सीधा व स्पष्ट सम्बन्ध चित्र से होना चाहिए।
ICSE Hindi Question Paper 2011 Solved for Class 10
Answer:
(i) प्रातःकालीन भ्रमण से लाभ
किसी ने ठीक ही कहा है –
“सैर कर दुनिया की गाफिल, जिन्दगानी फिर कहाँ ?
जिन्दगानी गर रही तो, नौजवानी फिर कहाँ।

वास्तव में ‘भ्रमण’ शब्द से ही स्वाभाविक प्रसन्नता की अनुभूति मन में होने लगती है। इसी प्रसन्नता के लिए व्यक्ति एक स्थान से दूसरे स्थान की यात्रा करता हुआ सुखानुभूति करता है। भ्रमण करना एक प्रकार का वैयक्तिक शौक है जिसकी पूर्ति हेतु लोग दूर-दुर्गम स्थानों में भटकते रहते हैं। विशेष रूप से प्रातःकालीन भ्रमण के अनेकानेक लाभप्रद पहलू हैं। एक ओर तो प्रात:कालीन भ्रमण व्यक्ति को आन्तरिक प्रसन्नता प्रदान करता है दूसरी ओर स्वास्थ्यवर्द्धक सिद्ध होता है। इससे हम अपने तन, मन तथा आत्मा को स्वस्थ एवं प्रसन्नचित रख सकते हैं।

हमारा कार्यक्षेत्र कोई भी हो पर यह नितान्त आवश्यक है कि स्वस्थ शरीर से ही हम अपने कार्यक्षेत्र में सफलता की प्राप्ति कर सकते हैं। प्रात:कालीन भ्रमण के अनेक लाभ माने गये हैं उन सबमें सबसे अधिक प्रभावी लाभ यह है कि सुबह-सुबह सूरज उदित होने से पहले वृक्षों एवं वनस्पति द्वारा ऑक्सीजन छोड़ी जाती है जो प्रत्येक प्राणी की रक्षा के लिए अति आवश्यक है। शुद्ध ऑक्सीजन नाक के द्वारा फेफड़ों में भरकर जीवन शक्ति को बढ़ाती है व प्रत्येक प्राणी की रक्षा के लिए बहुत जरूरी भी है।

व्यक्ति के शरीर में तथा मन-मस्तिष्क में तरोताजगी समा जाती है। आलस्य व प्रमाद दूर भगाये जा सकते हैं। तन, मन, आत्मा में प्रसन्नता का वास होता है। प्रात:कालीन भ्रमण के उपरान्त व्यक्ति न केवल ताजगी व स्फूर्ति से भर जाता है बल्कि निराशा भी उसके मन में नहीं समाती। साथ ही परिश्रम से भी वह जी नहीं चुराता। अतः प्रातःकालीन भ्रमण करने वाला व्यक्ति अपने प्रत्येक कार्य में जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में हमेशा सफलता का ही सहभागी बनता है।

हाँ मैं भी प्रात:कालीन भ्रमण के लिए जाता हूँ। मेरे दादाजी पास के पार्क में बचपन से मुझे अपने साथ घुमाने ले जाते हैं। अब वहाँ जाना मेरा स्वभाव सा बन गया है किन्तु मनचाहा समय में विद्यालय के प्रात:काल जल्दी हो जाने पर नहीं दे पाता। उन दिनों मुझे मन मार कर रहना पड़ता है।

प्रात:कालीन दृश्य वास्तव में बहुत ही सुहाना व मनभावन होता है। प्रातः की सैर जब सूर्योदय से पहले की जाती है ती वातावरण नीरवता से भरा होता है। चिड़ियों का चहचहाना, फूलों की भीनी-भीनी सुगन्ध व धुला-धुला सा वातावरण मन को लुभावना लगता है। रात की कालिमा की धुंध व ओस के कण पौधों से मोती के समान सूर्य के उगते ही लुप्त हो जाते हैं। धीरे-धीरे कोलाहल किरणों के प्रकाश के साथ हमारे आसपास के वातावरण में फैलने लगता है।

सभी जागने लगते हैं व अपने कर्मपथ पर चलने के लिए अग्रसर हो उठते हैं। घास पर ओस की नमी विराजमान होती है व हमारे मन को आह्लादित बनाती है। हमें प्रात:कालीन भ्रमण हेतु उपयुक्त स्थान का ही चयन करना चाहिए। खुला वातावरण, हरी घास, नदियों, नहरों के किनारे, बाग-बगीचे ही उपयुक्त स्थान होते हैं। हमें हमेशा जीवन में खुशहाली लाने के लिए प्रात:कालीन भ्रमण को अपने दैनिक कार्यों में प्रमुख स्थान देना चाहिए।

(ii) कौन बनेगा करोड़पति
अगर मैं ‘कौन बनेगा करोड़पति’ में पाँच करोड़ रुपये जीत गया तो उन पैसों से अपनी मनोकामनाएं पूरी करूँगा। धन सबकुछ नहीं तो सबकुछ के बहुत पास पहुँचने का आधार है। सबसे पहला कार्य उन पैसों से मैं करूँगा कि अपने शहर में एक वृद्धाश्रम खुलवाऊँगा। समय की बदलती धारा में हमारे समाज में वृद्धों के साथ परिवारीजनों द्वारा दुर्व्यवहार की खबरें हम प्रतिदिन सुनते हैं। माता-पिता अपनी चार सन्तानों को तो पाल लेते हैं पर चार सन्ताने मिल कर अपने माता-पिता को नहीं पाल पातीं। इसलिए मैं ऐसा एक वृद्धाश्रम खोलना चाहूंगा जो ऐसे वृद्धजनों के स्वास्थ्य व खुशहाली को परिपूर्ण कर सके।

दूसरा कार्य पाँच करोड़ रुपये से मैं यह करूँगा कि एक बार हिमालय दर्शन का सुख प्राप्त कर सकूँ। मेरे मन में बचपन से यह स्वप्न है कि एक बार हिमालय पर्वत को निकट से देखू। हिमालय की चोटियाँ, हिममंडित शिखर, झरने, घाटियाँ, बियावान जंगल सब कुछ अपनी आँखों से देखने को जी चाहता है। मैं इस कामना को अवश्य पूरा करूँगा।

तीसरा कार्य जो उन पाँच करोड़ रुपयों से मैं करूँगा वह है अपने मित्र सौरभ की मदद। सौरभ मेरा परम मित्र है पर वह बहुत गरीब है। उसके पिताजी का देहान्त बचपन में हो जाने के कारण केवल माँ ही उसकी जिम्मेदारी उठाती है। वह एक फैक्ट्री में काम करती है। जितना भी कमाती है अपने बेटे के उज्ज्वल भविष्य के लिए खर्च कर देती है, परन्तु फिर भी सौरभ को वे सभी सुविधाएँ नहीं मिल पातीं, जो एक बच्चे का अधिकार होता है। समाज में बहुत सारे लोग अभावों में जी रहे हैं पर मैं सबकी मदद चाह कर भी नहीं कर सकता पर सौरभ मेरा परम मित्र है इसलिए सच्चे मित्र के रूप में उसकी मैं मदद करना चाहता हूँ ताकि वह अपनी पढ़ाई बिना किसी व्यवधान के पूरी कर सके।

अपनी माता की चिन्ता में वह अपनी पढ़ाई पर एकाग्रता से मन नहीं लगा पाता इसलिए यह आवश्यक कार्य भी होगा व मेरी कामना भी जो मैं पाँच करोड़ रुपये पाकर पूरी करना चाहूँगा। वास्तव में हम सारी दुनिया की मदद नहीं कर सकते पर अपने समीप व सम्पर्क में आने वालों का सहारा बनकर हम एक दूसरे के सच्चे मददगार बन सकते हैं। ये तीन आवश्यक कार्य मैं पाँच करोड़ रुपये पाने पर पूरे करूँगा। ये तीनों कार्य मुझे मानसिक शान्ति व सन्तुष्टि प्रदान कर सकेंगे। इससे अपने बड़ों के प्रति कर्त्तव्य, स्वयं की कामना की पूर्ति व मित्र का सहायक बन मैं वास्तविक आनन्द भोग सकूँगा व इनाम पाने की खुशी चार गुना बढ़ जायेगी। केवल धन से वह सन्तुष्टि नहीं मिलती जो धन का सदुपयोग मन मुताबिक करके मैं पा सकूँगा।

(iii) असफलता ही सफलता का आधार है (पक्ष)
मानव की शक्ति एवं सीमाओं के विषय में अनुमान नहीं लगाया जा सकता है। यह उसके असीम सामर्थ्य का ही परिणाम है कि उसने विज्ञान की सहायता से विभिन्न उपग्रहों एवं ग्रहों तक जाने की योजनाओं को साकार रूप देने की कोशिश की है। मानव मन का उत्साह एवं अनेकानेक बार प्रयास उसकी सफलता का द्योतक है। यदि हमारा मन असफलता पाने के बाद भी विजय पाने का विश्वास फिर से संजोता है तो हम अवश्य ही विजय पा जाते हैं। यदि मन ही हमारा कार्य करते समय हार जाता है तो असफलता ही हमारे हाथ लगती है।
सच ही कहा गया है –

“ठोकरों से डर न साथी ये सफलता की निशानी,
राह पर जाते देख तुझे कहती हैं अपनी कहानी।”

इसलिए आशा का सम्बल न त्यागते हुए हमें अपने मन में निराशा नहीं लानी चाहिए। निराशा असफलता ही लाती है। शंका के भाव हमारे मन में जहाँ एक ओर नकारात्मकता का प्रवाह करते हैं वहीं आशा, विश्वास हमारे आत्मबल में वृद्धि कर हमारे धैर्य को बढ़ाते हैं तथा विजय के समक्ष ले जाते हैं। मन में शक्ति व उत्साह हो तो मनुष्य विपत्तियों का सामना भी मुस्कुराता हुआ करता है व मरुस्थल में फूल खिला सकता है। कठिन से कठिन परिस्थितियों में संकटों पर विजय पाकर सफलता रूपी उपहार पा जाता है।
इसीलिए कहा गया है –

“जिसने मरना सीख लिया है, जीने का अधिकार उसी को
जो काँटों के पथ पर आया, फूलों का उपहार उसी को।”

इसलिए इस सत्य को स्वीकारना ही होगा कि न्याय व सत्य की राह पर अनुगमन करने वाला कभी मन से नहीं हारता। मन की स्थिरता, दृढ़ता रूपी गुण मनुष्य को असफल परिस्थितियों में भी सफलता का रसास्वादन कराती है। जो संकटों से घबरा कर किनारे ठहर जाते हैं उन्हें मोती की प्राप्ति कैसे सम्भव है ? गहराइयों में जाये बिना मोती कभी नहीं पाया जा सकता। हमें मानना ही होगा कि हमारा समस्त कर्म आत्मबल पर निर्भर होता है। असफलता की प्राप्ति हमारे मन को असफल न बना पाये इसलिए असफलता को हमें अपनी सफलता का आधार मानना होगा। इतिहास साक्षी है कि वीरों में एक असाधारण शक्ति थी जिससे उन्होंने कल्पनातीत कार्य करके दिखलाए। वह शक्ति कुछ और नहीं प्रबल सकारात्मक इच्छाशक्ति व मनोबल ही था जिससे वीर मराठों को लेकर शिवाजी मुगलों से लड़ पाये। अंग्रेजों की विशाल सेना के सामने भारतीयों ने शंखनाद किया, स्वतन्त्रता संग्राम प्रारम्भ किया व असफलता पाते-पाते एक दिन अंग्रेजों की अजेय शक्ति को उखाड़ फेंका। भगवान बुद्ध ने कहा था—’अप्प दीपो भव’ अर्थात् अपना दीपक आप बनो। दूसरों के प्रकाश में चलने की कोशिश मत करते रहो।

इसलिए असफलताओं से हमें घबराना नहीं चाहिए असफलता तो सफलता पाने का आधार है। असम्भव से सम्भव बनाने वाली संकल्प शक्ति का जनक मन मानव से सब कुछ करवा सकता है। असफलताओं से अपने मन की शक्ति को परख कर हमें पथ की बाधाओं से इच्छाशक्ति एवं संकल्पशक्ति के साथ लड़ना चाहिए।

(iv) वही मनुष्य है जो मनुष्य के लिए मरे
वही मनुष्य है जो मनुष्य के लिए मरे अर्थात् सच्चा मनुष्य वही है जो मानव कल्याण के लिए अपना सब कुछ दाँव पर लगा दे। अति प्राचीनकाल से ही इस तरह के कथा प्रसंग हम सुनते आ रहे हैं। दानव और देवता संग्राम में वृत्रासुर के अत्याचारों से दुखी होकर जब ब्रह्मा जी के समीप देवता पहुंचे तो यही उपाय बूझा गया कि यदि महर्षि दधीचि की अस्थियों को अस्त्र बनाकर युद्ध लड़ा जाये तो ही राक्षस को मारा जा सकेगा। महर्षि दधीचि ने स्वेच्छा से प्राण त्यागे व कहा था कि यदि मेरा यह तुच्छ शरीर किसी के प्राणों की रक्षा के काम आ जाये तो मैं अपने को सौभाग्यशाली समझंगा।

इसी प्रकार के अनेकों वृतान्त हमारे समक्ष समाज में उपस्थित होते हैं। बात बहुत पुरानी नहीं मात्र चार पाँच वर्ष पहले की है। आगरा शहर में दशहरा घाट पर हर वर्ष की तरह मेले का आयोजन यमुना किनारे के समीप किया जाता है। दशहरे का पर्व धार्मिक आस्था के साथ सौहार्द व प्रेम का भी प्रतीक माना जाता है। अनेकों श्रद्धालु इस सुअवसर पर यमुना स्नान के लिए जाया करते हैं। मैं और मेरे मित्रों ने भी इस बार वहाँ जाकर इस आयोजन को देखने का मन बना लिया। प्रात:काल से ही हम प्रसन्न थे कि आज हम सभी एक साथ खुशियों का इजहार करते हुए एक साथ पूरा दिन बितायेंगे। अपने परिवार की आज्ञा व निर्देशों को पाकर कि हम भीड़ में शैतानी न करें, पानी से दूर रहें व खुली चीजें खरीद के न खायें हम प्रसन्न मन एक साथ चल पड़े।

करीब 15-20 मिनट के अन्तराल में हम ‘दशहरा घाट’ पहुँच गये। वहाँ की चहल-पहल मन में हर्ष प्रवाहित कर रही थी। अनेकों प्रकार के खिलौनों व बर्तनों की दुकानें थीं। रंगी बिरंगी टोपियाँ व लकड़ी के खिलौने स्थान-स्थान पर बिक रहे थे। गुब्बारों को हाथ में लिए बच्चे प्रफुल्लित नजर आ रहे थे। हम सभी भी क्रमशः सभी दुकानों को देखते-देखते आगे बढ़ते गये। तभी हमें ढोल-नगाड़ों की आवाज सुनाई दी। हम सभी शोर-शराबा सुन उस ओर दौड़ पड़े।

हमने देखा कि एक टोली में नौजवानों की भीड़ रंग-बिरंगे रूप में उत्साह से नाच रही है। जानने पर पता लगा ये लोग यमुना घाट पर जाने वाले तैराक हैं। हम सभी भी उसी समूह का हिस्सा बन गये।
धीरे-धीरे नाचते-गाते वह समूह यमुना किनारे पहुँचा। हम सभी मित्र यमुना में कल-कल का स्वर करती जलधारा की अठखेलियाँ देखकर प्रसन्न हो रहे थे। धीरे-धीरे वे सभी नौजवान व अधेड़ उम्र के लोग यमुना की गति से अपनी गति मिलाते आगे बढ़ गये।

अनायास ही किनारे पर खेलते दो बच्चे यमुना में नौजवानों की तरह कूदे। उन्हें लगा होगा कि वे भी वैसे ही तैर लेंगे। नकल करके कूदते ही वे जल में समाने लगे। उसी समय वहाँ उपस्थित एक वृद्ध बिना समय गंवाये उन्हें बचाने दौड़ा और वह भी कूद गया। हम सभी मित्र मजबूर थे हमें तैरना नहीं आता था। पर हम जोर-जोर से चीखने लगे व उसकी मदद को लोगों को पुकारा। भीड़ चारों ओर जमा होने लगी तभी हमने देखा कि वह सज्जन उन बच्चों को पानी से खींचते हुए बाहर ला रहे हैं पर बहुत मुश्किल से। जैसे ही वह किनारे तक उन्हें लाये लोगों ने बच्चों को उठाया व जिन्दा पाया पर दुर्भाग्यवश उन वृद्ध सज्जन की साँसें बहुत तेज-तेज चल रही थीं। वहाँ आकर वह लड़खड़ा कर गिर पड़े व जब तक लोग अस्पताल लेकर पहुंचे उनकी साँसें थम चुकी थीं। डॉक्टर ने उन्हें मृत घोषित कर दिया। मेरी आँखों के सामने उस समय का दृश्य साकार हो उठा जब मेरे मन ने उस त्याग की मूर्ति को देखकर मान लिया था कि ‘वही मनुष्य है जो मनुष्य के लिए मरे।’ और उस व्यक्ति ने अपनी मनुष्यता का परिचय अपनी जान गंवा कर दे दिया था।

(v) चित्र प्रस्ताव
प्रस्तुत चित्र में हम देख सकते हैं कि सीढ़ियों पर एक बालक बैठा है। देखने में गरीब व अभावग्रस्त सा है। हाथ में एक कपड़ा व पास में पॉलिश की डिब्बी रखी हुई है। वहाँ से आने-जाने वालों के जूतों की पॉलिश करके अपनी जीविका चला रहा है। वास्तव में आज भी हमारे देश की छवि कितनी भी क्यों न बदल जाये, पर देश के दरिद्र नौनिहालों की दशा आज भी बहुत दयनीय है। जहाँ आज 14 वर्ष तक के बच्चों को शिक्षा का अधिकार प्राप्त है वहीं भुखमरी व गरीबी से जूझते परिवारों के लिए यही खेवनहार होते हैं। संसार में गरीबी को इसलिए सबसे बड़ा पाप कहा गया है क्योंकि यही सभी पापों की जड़ होती है। भूख एवं गरीबी आदमी को आदमी नहीं रहने देती। दो जून रोटी जुटाने के लिए समाज में इन्हें क्या-क्या नहीं करना पड़ता।

कितने दुःख और निराशा की बात है कि जिन माह-मुन्नों के खेलने-खाने या पढ़-लिखकर अपना भविष्य सँवारने के दिन होते हैं, उन्हें दिन में विषम एवं दयनीय परिस्थितियों में कई बार भूखों रहकर अपना व अपने परिवार का भरण-पोषण करने के लिए काम करना पड़ता है। वह भी तब जबकि राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय स्तरों पर प्रत्येक वर्ष “बाल दिवस’ मनाये जाते हैं।

आज यह बाल मजदूरी केवल घरों में काम करने तक सीमित नहीं रह गयी; होटलों, ढाबों, दुकानों कलकारखानों, भट्टियों, छोटी-बड़ी फैक्ट्रियों आदि स्थानों पर कठोर श्रम करके बचपन को गलाते बाल-इच्छाओं और भावी जीवन-विकास का गला घोंटते हुए हम देख सकते हैं। इस प्रकार के श्रम को इन बच्चों के द्वारा अपनाये जाने के भी अनेकानेक कारण होते हैं। कभी-कभी हम पाते हैं कि अक्सर बाल-श्रमिक दूर-दराज के देहातों से आ जाते हैं मूल रूप से कारण घोर दरिद्रता ही होती है। कुछ बच्चे माता-पिता के कठोर व्यवहार से तंग आकर भी घरों से भागकर ऐसे कार्य करके विवशता में गुजारा करते हैं। कभी-कभी विमाता के व्यवहार से पीड़ित होकर घरों से भागकर ये बच्चे अपना भविष्य बिगाड़ बैठते हैं।

पॉलिश करके या खेल-तमाशे दिखाकर जीवन गुजारने वाले ये बालक अपना भविष्य अन्धकारमय बना बैठते हैं। दूसरों के जूते चमका कर चाहे वह कुछ धन उपार्जन क्यों न कर लें पर उनका भविष्य व जीवन चमकहीन होता जाता है। बच्चे हमारे राष्ट्र की सम्पत्ति और भविष्य के नागरिक होते हैं। समाज की कुछ संस्थायें व संवेदनशील लोग आज इस समस्या के समाधान हेतु ऐसे बच्चों के भविष्य को उबारने आगे बढ़ रहे हैं। उन्हें सायंकालीन कक्षाओं में पढ़ाया जा रहा है।

भोजन, वस्त्र व अन्य आवश्यक वस्तुओं की पूर्ति कराने का प्रयास किया जा रहा है परन्तु इन बाल मजदूरों के अनुपात में यह प्रयास बहुत कम साबित हो रहे हैं। सरकारी योजनाओं में इनका उत्थान व विकास भी शामिल किया जाये। अन्यथा इन मासूम बाल मजदूरों के रूप में मानवता तो पिसती ही रहेगी, हमारा भविष्य भी खतरे में पड़ जायेगा। 14 वर्ष से कम आयु के बच्चों से कार्य कराना केवल अपराध घोषित करना ही काफी नहीं है। हमें वे परिस्थितियाँ भी सुधारनी होंगी जो मजबूरी बन इन बच्चों के भविष्य की चमक धुंधली कर देती हैं।

Question 2.
Write a letter in Hindi in approximately 120 words on any one of topics given below:
निम्नलिखित में से किसी एक विषय पर हिन्दी में लगभग 120 शब्दों में पत्र लिखिए – [7]
(i) 2011 में दिये जाने वाले ‘बच्चों के वीरता पुरस्कार’ के लिए आपको चुना गया है, अपने मित्र को पत्र द्वारा प्रसन्नता तथा उत्तेजना की भावनाओं से अवगत कराते हुए, उस घटना का संक्षिप्त वर्णन कीजिए जिसके कारण आपको इस पुरस्कार के लिए चयनित किया गया।
(ii) आपने नया कम्प्यूटर खरीदा है, किन्तु खरीदने के एक महीने बाद ही उसमें खराबी आ गयी। आपकी शिकायत पर दुकानदार ने कोई ध्यान नहीं दिया। कम्पनी के मुख्य मैनेजर को पत्र लिखकर घटना की जानकारी देते हुए
उनसे अनुरोध कीजिए कि वे आपके साथ न्याय करें।
Answer:

मित्र को पत्र
F-24, कमला नगर,
आगरा।
दिनांक : 20-03-2011

प्रिय मित्र आकाश,
वन्दे।

आशा है तुम सकुशल होगे। मैं भी यहाँ अच्छी तरह हूँ। घर पर सभी लोग भी ईश्वर की कृपा से कुशल मंगल होंगे। आकाश आज मैं बहुत प्रसन्न हूँ कि तुम्हारे द्वारा भेजा गया मेरा नाम इस बार बच्चों को प्रदान किये जाने वाले ‘वीरता पुरस्कार’ के लिए चुन लिया गया है। मैंने तो कभी आशा भी नहीं की थी पर आज एक पत्र इस सूचना हेतु मेरे घर आया जिसमें मुझे चुना गया है।

मुझे आज भी याद है वह दिन जब हम स्कूल से लौट रहे थे। किस प्रकार नदी किनारे भीड़ थी और हम जब वहाँ पहुँचे थे तो अनायास पता नहीं क्या हआ था कि मैं उन डूबते बच्चों को देखकर ठहर न पाया। किसी तरह उन्हें बचाकर ले ही आया था। सारे शहर ने मेरी प्रशंसा की थी। मेरा सम्मान किया था। धीरे-धीरे मैं ये बातें भूल सी गया था। अचानक इस पत्र को पाकर प्रसन्नता हुई कि तुमने मेरा नाम वीरता पुरस्कार हेतु भेजा था वह चुन लिया गया है। मैंने यह सब इस उद्देश्य से नहीं किया था पर आज वही जज्बा फिर मन में भर आया है कि आगे भी दूसरों की मदद से पीछे नहीं हटूंगा।

घर पर माता-पिता व बहन रुचि को मेरा प्रणाम व स्नेह देना। इस शहर से स्थानान्तरण के बाद कभी तुमसे मिल नहीं सका। हो सके तो पिताजी के साथ एक बार फिर आगरा घूम जाना। अच्छा अब पत्र समाप्त करता हूँ। पत्रोत्तर की प्रतीक्षा में।

तुम्हारा अभिन्न मित्र
राजीव

पत्र भेजने का पता
श्रीमान रमेश चौधरी
15/120, किदवई नगर,
कानपुर।

(ii) प्रबन्धक को पत्र

सेवा में
प्रबन्धक महोदय
एच. सी. एल. कम्प्यूटर,
गुड़गाँव, दिल्ली।
विषय : कम्प्यूटर की खराबी की सूचना हेतु शिकायती पत्र।
महोदय,
मैं राजीव शर्मा आगरा शहर का निवासी हूँ। मैंने यह पत्र आपको इसलिए लिखा है कि मैंने आगरा शहर में एक कम्प्यूटर आपकी एच. सी. एल. कम्पनी का खरीदा था।
महोदय कम्प्यूटर लाने के दूसरे महीने ही उसके सी. पी. यू. में कोई खराबी आ गयी व कार्य करने में अवरोध उत्पन्न हो गया। मैंने तुरन्त स्थानीय दुकानदार से इसकी शिकायत की और उन्होंने तुरन्त मेरी समस्या के समाधान का आश्वासन भी दिया था परन्तु आज तीन सप्ताह बीत जाने पर भी मेरी समस्या के समाधान का कोई प्रयास नहीं किया गया बल्कि अब तो वह इसे अपनी जिम्मेदारी ही नहीं मान रहे। .. महोदय इस तरह का व्यवहार उपभोक्ताओं के साथ अन्याय का प्रमाण है। मैं यह अन्तिम पत्र आपको लिख रहा हूँ। इस पर ध्यान देते हुए मेरे साथ न्यायपूर्ण व्यवहार किया जाये। मेरी समस्या का अतिशीघ्र समाधान कराया जाये अन्यथा मुझे न्यायालय की शरण में जाकर इसका निर्णय करवाना पड़ेगा।
आशा है आप दुकानदार के इस दुर्व्यवहार से होने वाले अन्याय से मुझे समाधान दिलवायेंगे।
धन्यवाद।

प्रार्थी
राजीव शर्मा
10, एच. राजा की मण्डी,
आगरा।

दिनांक : 20.03.2011

Question 3.
Read the passage given below and answer in Hindi the questions that follow, using your own words as far as possible:
निम्नलिखित गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़िये तथा उसके नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर हिन्दी में लिखिए। उत्तर यथासम्भव आपके अपने शब्दों में होने चाहिए –
राणा संग्राम सिंह वीरगति प्राप्त कर चुके थे। चित्तौड़ के सिंहासन पर उनके बड़े पुत्र विक्रमादित्य बैठे; किन्तु उनकी अयोग्यता के कारण राजपूत सरदारों ने उन्हें गद्दी से हटा दिया। राणा साँगा के छोटे पुत्र उदयसिंह राज्य के उत्तराधिकारी घोषित किए गये, किन्तु वे अभी छ: वर्ष के बालक थे। अतएव दासी-पुत्र बनबीर को उनका संरक्षक और उनकी ओर से राज्य का संचालनकर्ता बनाया गया क्योंकि महारानी करुणावती का भी स्वर्गवास हो चुका था।

राज्य का लोभ मनुष्य को मनुष्य नहीं रहने देता। बनबीर भी राज्य के लोभ से पिशाच बन गया। उसने सोचा कि यदि राणा साँगा के दोनों पुत्रों को मार दिया जाए तो चित्तौड़ का सिंहासन उसके लिए निष्कंटक हो जाएगा। इसी विचार से एक रात नंगी तलवार लिए वह अपने भवन से निकला। उसने लालच में अन्धे होकर विक्रमादित्य की हत्या कर दी। राजकुमार उदयसिंह सायंकाल का भोजन करके सो चुके थे। उनका पालन-पोषण करने वाली पन्ना धाय को बनबीर के बुरे अभिप्राय का कुछ पता न था। रात में जूठे पत्तल हटाने बारिन आयी, उसने पन्ना को बनबीर द्वारा विक्रमादित्य की हत्या का समाचार दिया। बारिन उस समय वहीं थी और बनबीर का यह कुकृत्य देखकर किसी प्रकार भागी हुई पन्ना के पास आयी थी। उसने कहा-‘वह यहाँ आता ही होगा।’

पन्ना चौंकी और उसे अपना कर्तव्य स्थिर करने में क्षणभर भी न लगा। उसके बालक उदयसिंह को उठाकर बारिन को दे दिया और कहा ‘इन्हें लेकर चुपचाप निकल जाओ। मैं तुम्हें वीरा नदी के तट पर मिलूँगी।’ उदयसिंह सो रहे थे। उन्हें टोकरे में लिटाकर, ऊपर से पत्तलें ढककर बारिन राजभवन से निकल गयी। इधर पन्ना ने अपने पुत्र चन्दन को कपड़ा उढ़ाकर उदयसिंह के पलंग पर सुला दिया। दोनों बालक लगभग एक ही अवस्था के थे। अपने स्वामी के बालक और राज्य के उत्तराधिकारी की रक्षा के लिए उस धर्मनिष्ठ धाय ने अपने कलेजे से टुकड़े का बलिदान करने का निश्चय कर लिया था।

नंगी रक्त सनी तलवार लिए बनबीर कुछ क्षणों के बाद ही आ धमका। उसके कड़क कर पूछा ‘उदय कहाँ है?’ पन्ना धाय ने अगुली से अपने सोते पुत्र की ओर संकेत कर दिया। तलवार उठी और उस अबोध बालक का सिर धड़ से अलग हो गया। बनबीर चला गया। कर्तव्यनिष्ठ पन्ना धाय के मुख से न चीख निकली, न नेत्रों से आँसू गिरे। उसे तो अभी अपना धर्म निभाना था। उसका हृदय फटा जाता था। पुत्र का शव लेकर वह राजभवन से निकली।

वीरा नदी के तट पर उसने पुत्र का अन्तिम संस्कार किया और मेवाड़ के नन्हें निद्रित अधीश्वर को लेकर रात्रि में ही मेवाड़ से बाहर निकल गयी। बेचारी धाय! कोई उसे आश्रय देकर बनबीर से शत्रुता मोल लेना नहीं चाहता था। अतः वह एक से दूसरे ठिकानों पर भटकती फिरी। अन्त में देयरा के आशाशाह ने उसे आश्रय दिया। बनबीर को उसके कर्म का दण्ड मिलना था, मिला। राणा उदयसिंह जब गद्दी पर बैठे, पन्ना धाय की चरणधूलि अपने मस्तक पर लगाकर उन्होंने अपने को धन्य माना। पन्ना चित्तौड़ की सच्ची धात्री सिद्ध हुई और सेवक धर्म के आदर्श का पाठ दुनिया को सिखा गयी। पन्ना धाय की उज्ज्वल कीर्ति अमर है।
(i) बनबीर कौन था ? लोभ में पड़कर उसे क्या सोचा? [2]
(ii) पन्ना धाय को बनबीर के बुरे अभिप्राय का कब व किस प्रकार पता चला? [2]
(iii) पन्ना धाय ने क्या निर्णय लिया और क्यों? [2]
(iv) पन्ना धाय वीरा नदी के तट पर क्यों पहुँची ? उसे अनेक ठिकानों पर क्यों भटकना पड़ा? [2]
(v) प्रस्तुत गद्यांश से आपको क्या शिक्षा मिली ? [2]
Answer:
(i) बनवीर चित्तौड़ के राणा संग्राम सिंह की दासी का पुत्र था। उसे राणा साँगा के छोटे पुत्र उदयसिंह का संरक्षक और राज्य का संचालनकर्ता बनाया गया था। लोभ में पड़कर वह पिशाच तुल्य बन गया था और सोचने लगा था कि यदि राणा साँगा के दोनों पुत्रों को मार दिया जाए तो चित्तौड़ का सिंहासन उसके लिए निष्कंटक हो जायेगा।

(ii) पन्ना धाय राजकुमार उदयसिंह का पालन-पोषण करती थी। उन्हें बनवीर के बुरे अभिप्राय का पता न था। रात में जब जूठे पत्तल हटाने बारिन आयी तो उसने ही पन्ना धाय को विक्रमादित्य की हत्या का समाचार दिया था व उसी ने बताया था कि बनवीर अब उदयसिंह को मारने यहाँ भी आता ही होगा।

(iii) पन्ना धाय ने अपने कर्त्तव्य को स्थिर कर लिया। उसने सोते हुए उदयसिंह को पत्तलों की टोकरी में लिटा कर वीरा नदी के तट पर भेज दिया व अपने एकमात्र पुत्र चन्दन को कपड़ा उढ़ाकर उदयसिंह के पलंग पर सुला दिया। क्योंकि पन्ना धाय को अपने स्वामी पुत्र एवं राज्य के उत्तराधिकारी की रक्षा करके अपने कर्तव्य को निभाना था।

(iv) पन्ना धाय के पुत्र को बनवीर ने उदयसिंह समझ कर मार दिया था। पन्ना धाय अपना धर्म निभाने के लिए वीरा नदी के तट पर पहुंची जहाँ उसने अपने पुत्र का अन्तिम संस्कार किया व बारिन से उदयसिंह को लेकर रात्रि में मेवाड़ से बाहर चली गयी। उसे अनेक ठिकानों पर इसालिए भटकना पड़ा क्योंकि बनवीर से शत्रुता कोई मोल लेना नहीं चाहता था इसलिए उसे किसी ने आश्रय नहीं दिया। प्रस्तुत गद्यांश से हमें पन्ना धाय के त्याग-बलिदान की सीख मिलती है। उसने अपने कर्तव्य पालन के लिए अपने पुत्र का भी बलिदान दे दिया व सेवक धर्म का आदर्श दुनिया को सिखाया। आज भी उसकी उज्ज्वल कीर्ति अमर है।

Question 4.
Answer the following according to the instructions given :
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर निर्देशानुसार लिखिए-
(i) निम्न शब्दों से विशेषण बनाइए : [1]
दिन, माया।
(ii) निम्न शब्दों में से किसी एक शब्द के दो पर्यायवायी शब्द लिखिए : [1]
भाग्य, पवित्र।
(iii) निम्न शब्दों में से किन्हीं दो शब्दों के विपरीतार्थक शब्द लिखिए : [1]
साकार, क्षणिक, विस्तृत, कीर्ति
(iv) निम्नलिखित मुहावरों में से किसी एक की सहायता से वाक्य बनाइए : [1]
ज़हर का बूंट पीना, नाक रख लेना।
(v) भाववाचक संज्ञा बनाइए : [1]
एक, उड़ना।
(vi) कोष्ठक में दिए गए निर्देशानुसार वाक्यों में परिवर्तन कीजिए :
(a) घर जाने में एकमात्र चार दिन शेष हैं। [1]
(वाक्य शुद्ध कीजिए)
(b) एक नवयुवक को यह बन्धन पसन्द नहीं आया। [1]
(‘पसन्द’ के स्थान पर ‘अच्छा’ शब्द का प्रयोग कीजिए)
(c) विद्यार्थियों ने एक निबन्ध लिखा। [1]
(वाक्य को वर्तमानकाल में बदलिए)
Answer:
(i) विशेषण शब्द –
दिन – दैनिक
माया – मायावी।

(ii) पर्यायवाची शब्द –
भाग्य – किस्मत, विधि लेखा
पवित्र – पावन, शुचि।

(iii) शब्दों के विपरीत शब्द –
साकार – निराकार
क्षणिक – शाश्वत
विस्तृत – लघु
कीर्ति – अपयश

(iv) मुहावरों का वाक्य प्रयोग –
जहर का चूंट पीना – (चुपचाप अपमान को सहन करना)
वाक्य प्रयोग – भरी सभा में पंचों के द्वारा अपमानित किये जाने पर हरखू जहर का चूंट पीकर रह गया।
नाक रख लेना – (मान रखना)
वाक्य प्रयोग – अपने पिताजी का लिया कर्ज चुकाकर पुत्र ने पिता की नाक रख ली।

(v) भाववाचक संज्ञा में परिवर्तन –
एक – एकता
उड़ना – उड़ान

(vi) कोष्ठक में दिए गए निर्देशानुसार वाक्यों में परिवर्तन
(a) घर जाने में मात्र चार दिन शेष हैं।
(b) एक नवयुवक को यह बन्धन अच्छा नहीं लगा।
(c) विद्यार्थियों के द्वारा एक निबन्ध लिखा जा रहा है।

Section – B (40 Marks)

  • गद्य संकलन : Out of Syllabus
  • चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य : Out of Syllabus
  • एकांकी सुमन : Out of Syllabus
  • काव्य-चन्द्रिका : Out of Syllabus

ICSE Class 10 Hindi Previous Years Question Papers

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *