ICSE Hindi Previous Year Question Paper 2018 Solved for Class 10

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  • Attempt all questions from Section A.
  • Attempt any four questions from Section B, answering at least one question each from the two books you have studied and any two other questions.
  • The intended marks for questions or parts of questions are given in brackets [ ].

SECTION – A  [40 Marks]
(Attempt all questions from this Section)

Question 1.
Write a short composition in Hindi of approximately 250 words on any one of the following topics :
निम्नलिखित विषयों में से किसी एक विषय पर हिंदी में लगभग 250 शब्दों में संक्षिप्त लेख लिखिए :
(i) ‘परोपकार की भावना लोक-कल्याण से पूर्ण होती है।’ हमें भी परोपकार से भरा जीवन ही जीना चाहिए। विषय को स्पष्ट करते हुए अपने विचार लिखिए।
(ii) “आजकल देश में आवासीय विद्यालयों (Boarding Schools) की बाढ़ सी आ गई है। आवासीय विद्यालयों की छात्रों के जीवन में क्या उपयोगिता हो सकती है ?” – इस प्रकार के विद्यालयों की अच्छाइयों एवं बुराइयों के बारे में बताते हुए वर्तमान में इनकी आवश्यकता पर अपने विचार लिखिए।
(iii) संयुक्त परिवार के किसी ऐसे उत्सव के आनंद का विस्तार से वर्णन कीजिए, जहाँ आपके परिवार के बच्चे-बुजुर्ग सभी उपस्थित थे।
(iv) एक ऐसी मौलिक कहानी लिखिए जिसके अंत में यह वाक्य लिखा गया हो-‘अंततः मैं अपनी – योजना में सफल हो सका/हो सकी।’
(v) नीचे दिए गए चित्र को ध्यान से देखिए और चित्र को आधार बनाकर उसका परिचय देते हुए कोई लेख, घटना अथवा कहानी लिखिए, जिसका सीधा व स्पष्ट संबंध चित्र में होना चाहिए।
ICSE Hindi Question Paper 2018 Solved for Class 10 1
Answer :
(i) ‘परोपकार की भावना लोक-कल्याण से पूर्ण होती है। हमें भी परोपकार भरा जीवन ही जीना चाहिए। विषय को स्पष्ट करते हुए अपने विचार लिखिए। परोपकार अथवा परमार्थ या लोक कल्याण की भावना हमारी संस्कृति का अटूट अंग है। हमारे देश के अतीत को देखा जाए तो असंख्य ऐसे परोपकारी महापुरुष मिल जाएँगे जिन्होंने अपना सर्वस्व अर्पित करके परोपकार को महत्त्व दिया। परोपकार और परहित दो-दो शब्दों से मिलकर बने हैं – पर + उपकार, पर + हित । इन दोनों का आशय हैदूसरों का उपकार या हित करना। प्राचीन काल से ही मनुष्य में दो प्रकार की प्रवृत्तियाँ कार्य कर रही हैंस्वार्थ की तथा परमार्थ की। परमार्थ की भावना से किया गया कार्य ही परोपकार के अंतर्गत आता है।

जब व्यक्ति ‘स्व’ की परिधि से निकलकर ‘पर’ की परिधि में प्रवेश करता है, तो उसके इस कृत्य को परोपकार कहा जाता है। संस्कृत में कहा गया है कि फल आने पर वृक्षों की डालियाँ झुक जाती हैं, जिसका आशय है कि फल आने पर वृक्ष अपने फल संसार की सेवा के लिए अर्पित कर देते हैं। प्रकृति का कण-कण परोपकार में लगा हुआ है। नदी अपना जल स्वयं नहीं पीती, पेड़ अपने फल स्वयं नहीं खाते, सूर्य स्वयं तपकर दूसरों को प्रकाश तथा ऊष्मा देता है। रहीम ने ठीक ही कहा है

‘वृक्ष कबहुँ नहिं फल भखै, नदी न संचै नीर
परमारथ के कारने साधुन धरा सरीर।’

महापुरुषों का जीवन परोपकार के लिए होता है। भारतीय संस्कृति के अनुसार भगवान भी पृथ्वीवासियों का कल्याण करने के लिए धरती पर अवतीर्ण होते हैं । कृष्ण ने गीता में स्वयं कहा है- ‘परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्।’ महर्षि दधीचि ने स्वेच्छा से अपनी अस्थियाँ असुरों के विनाश के लिए दे दी। आधुनिक युग में ईसा मसीह ने मानव मात्र के कल्याण के लिए सूली पर चढ़ना स्वीकार कर लिया। महात्मा गांधी ने अपना सारा जीवन परोपकार में लगा दिया।

मदर टेरेसा ने परोपकार को ही अपना जीवन-लक्ष्य बना लिया। पशु केवल अपने लिए जीता है, पर मनुष्य दूसरों के लिए भी जीता है, इसलिए वह पशु से भिन्न है। यही पशु प्रवृत्ति है कि आप ही चरे, मनुष्य है वहीं कि जो मनुष्य के लिए मरे।’ संसार के सभी विचारकों ने मानवता की सेवा को मनुष्य का परम धर्म स्वीकार किया है। आज का मानव स्वार्थ की भावना से युक्त है। वह पशु-तुल्य जीवन व्यतीत कर रहा है। वह येन-केन प्रकारेण अधिकाधिक धन कमाकर अधिक-से-अधिक सुख एवं ऐश्वर्य प्राप्त करना चाहता है।

अपने इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए वह अपना स्वार्थ सिद्ध करने में भी पीछे नहीं हटता। स्वार्थ की इसी प्रवृत्ति के कारण आज चारों ओर ईर्ष्या, वैमनस्य, कटुता, अशांति आदि का बोलबाला हो गया है। हमारा कर्तव्य है कि हम परोपकारी बनें तथा दूसरों को भी सुखी बनाने की चेष्टा करें। हमें भारतीय संस्कृति के इस आदर्श को ध्यान में रखना चाहिए। यह भी ध्यान रहे कि हमारे पूर्वजों ने परोपकार के लिए अपना तन, मन, धन न्योछावर करने की परिपाटी निभाने में कभी कोई कसर नहीं उठा रखी थी।

(ii) आवासीय विदयालय आज का युग भौतिकवाद का युग है। इस युग में प्रदर्शनप्रियता का बोलबाला है। प्रत्येक क्षेत्र में प्रदर्शन ही प्रदर्शन देखने में आ रहा है। शिक्षा और शिक्षा-व्यवस्था भी इसी भौतिकवाद का शिकार हो चुकी है। आज की शिक्षा व्यवसाय में बदल चुकी है। एक ओर अभिभावक अपनी ज़िम्मेदारियों से मुक्त होने के लिए कितना भी पैसा लुटाने को तैयार हैं तो दूसरी ओर शिक्षा को कारोबार बनाने वाले लुटेरे, शिक्षा के नाम पर अपना सब कुछ लूटने को तैयार बैठे हैं।

आज के दौर में आवासीय विद्यालयों की बाढ़-सी आ चुकी है जिन्हें प्रायः रेज़िडेंशियल या बोर्डिंग स्कूल कहा जाता है। लोग अपने बेटे-बेटियों को तीन वर्ष तक घर में रखकर ऊब चुके होते हैं। ऐसे स्वार्थी मातापिता को इस प्रकार के आवासीय विद्यालयों में अपनी ‘चरमशांति’ दिखाई देती है। वे धन का अर्पण करके अपने मन की कथित शांति खरीदने निकल पड़ते हैं। बच्चे ऐसे आवासीय विद्यालयों में कई प्रकार की समस्याओं का सामना करते हैं।

एकाकीपन, स्वार्थीपन, चंचलता, उद्विग्नता, आशाभंग, पलायन, दुराचरण आदि की समस्याएँ इन्हीं विद्यालयों की देन है। ऐसी शिक्षा व्यवस्था के कारण ही आज के युवावर्ग का सर्वाधिक नैतिक पतन हुआ है। आज मनुष्य सिद्धियों के पीछे भाग रहा है। वह अपनी उच्च संस्कृति की श्रेष्ठ साधनाओं को भूलता जा रहा है। मन की चंचलता, लोभ, उद्विग्नता, आशाभंग, दुविधा, पलायन आदि छात्रों को भ्रष्टाचार की ओर ले जा रहे हैं। वैदिक शिक्षा में धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष नामक चार फल मानव को सन्मार्ग पर अग्रसर करने के लिए स्वीकार किए गए हैं।

आज का मानव केवल अर्थ और काम के पीछे अंधा हो रहा है। उसे अर्थ या पैसा चाहिए और पैसे से वह काम अर्थात् भ्रष्ट आचरण की ओर बढ़ता है। नैतिक पतन और भ्रष्टाचार एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। जो मनुष्य नैतिकता से गिरेगा, वह भ्रष्टाचार की झोली में पड़ेगा। आज की सर्वव्यापी अशांति और असंतोष का मूल यही भ्रष्टाचार है। छोटे बच्चे से लेकर प्रौढ़ तक साधारण जन से लेकर शासक तक अनेकानेक लोग भ्रष्ट आचरण अपनाते जा रहे हैं। व्यक्ति का मन शुद्ध न रहने से समाज दूषित हो रहा है।

मनुष्य तो यही सोच रहा है कि भौतिक स्तर ऊँचा हो जाने से वह ऊँचा हो सकेगा। उसे यह तथ्य भूलता जा रहा है कि आत्मिक बल और नैतिक आचरण के बिना भौतिक उन्नति किसी काम की नहीं है। जो राष्ट्र, समुदाय या संप्रदाय अपने धर्म अर्थात् कर्तव्य को नैतिकता के साथ नहीं जोड़ते वहाँ असंतोष, घृणा व वैमनस्य अवश्य बढ़ता है। धर्म और राजनीतिक दोनों क्षेत्रों में अनेक प्रकार के भ्रष्टाचार आए दिन दैनिक समाचार पत्रों व केंद्रों से प्रसारित हो रहे हैं। आज समाज में ‘अर्थ’ और ‘काम’ के प्रति अंधी लालसा उत्तरोत्तर बढ़ती जा रही है।

मानव भोगवाद को अपनाकर भ्रष्ट मार्गों पर चलने लगा है। उसे सत्य, न्याय, दया, परोपकार, मन की शुद्धि आदि मूल्यों का कोई महत्त्व दिखाई नहीं देता। विद्यालयों के बच्चे भी इस भ्रष्टाचार से अछूते नहीं रहे। वे नये युग की संचार सुविधाओं व आवासीय विद्यालयों की संस्कृति के कारण भ्रष्ट व दुराचारी होने के साथ-साथ घर व समाज से कटते जा रहे हैं। ऐसी संस्कृति में सकारात्मक व निर्माणात्मक सुधारों की आवश्यकता है।

(iii) संयुक्त परिवार के किसी उत्सव का आनंद आज का मनुष्य स्वकेंद्रित होता जा रहा है। वह संयुक्त परिवार तो दूर, अपने परिवार से भी कटा-कटा सा रहने लगा है। परंतु मैं इस संदर्भ में बहुत सौभाग्यशाली हूँ कि मुझे भरा-पूरा परिवार मिला है। जिसमें मेरे माता-पिता, भाई-बहन के अतिरिक्त हमारे पूज्य दादा जी और पूज्या दादी जी भी निवास करते हैं। मैं प्रायः गर्व के साथ अपने इस संयुक्त परिवार में मिलने वाले आनंद का वर्णन अपने मित्रों व संबंधियों से करता रहता हूँ।

संयुक्त परिवार में रहते हुए यूँ तो मैंने कई उत्सवों का आनंद लिया है परंतु सबसे बड़ा आनंद मुझे गंधर्व संगीत-उत्सव में प्राप्त हुआ। यह उत्सव हमारे पास के गाँव में प्रत्येक वर्ष शरद पूर्णिमा को अति उल्लास व श्रद्धा के साथ मनाया जाता है। मेरे दादा जी तथा पिता जी संगीत के आनंद की बातें प्रायः करते रहते हैं। दादा जी बताया करते हैं कि संगीत से विशेष आनंद इसलिए मिलता है क्योंकि हमारा जीवन प्रायः इकरसता को तोड़ने की इच्छा करता रहता है। प्रतिदिन और दिन भर वही एक काम करते-करते मानव थक जाता है तथा उस इकरस दिनचर्या से ऊब जाता है। वह मानसिक मंदी अनुभव करता है।

उसे काम में बेचैनी, उदासी और विसंगति का बोध होने लगता है। इस बँधे-बँधाए ढर्रे को तोड़ने के लिए मानव के पास कई कलाएँ और अनेक रास्ते हैं जैसे खेल-तमाशा, नृत्य, नाटक, गीत, संगीत, कथा-गोष्ठी, दूरदर्शन, क्लब-पार्टियाँ, भोज, शिकार, पिकनिक आदि। संगीत के विषय में प्रसिद्ध है कि इसमें ऐसी अद्भुत शक्ति होती है कि वैरागी का मन बदल जाए, बीमार उठकर बैठ जाए, किसान ‘वाह’ कर उठे और युद्ध के मोर्चे पर जाते सैनिक के पाँव शिथिल पड़ जाएँ।

संगीत के सात सुरों से जुड़ी अनेकानेक कहानियाँ हैं। इसकी सम्मोहन शक्ति के आगे राजा अपना राजसिंहासन और ताज अर्पित कर देता है, कृपण सेठ अपनी थैली खोल देता है और प्रेमी अपना हृदय निकाल कर भेंट चढ़ा देता है। भारतीय मान्यता के अनुसार सरस्वती को संगीत की प्रेरक शक्ति माना जाता है क्योंकि उसके हाथ में वाणी और वीणा दोनों से जुड़ी शक्तियाँ हैं । संगीत गंधर्वो की देन है। इसीलिए आज भी अनेक संगीत के विद्यालयों के नाम ‘गंधर्व’ शब्द के साथ जुड़े हुए हैं। संगीत की दो शैलियाँ हैं-भारतीय और पाश्चात्य। हमारा पूरा परिवार उत्सव प्रारंभ होने से पूर्व ही अपना-अपना स्थान ग्रहण कर चुका था। संगीत-उत्सव प्रारंभ हुआ तो मुझे बहुत आनंद आने लगा। दादा जी की वह बात भी सही सिद्ध हुई कि संगीत आनंद के साथ-साथ कई रोगों का निदान है। मेरी सारी थकान दूर हो चुकी थी और मैं आनंद में कह उठा-वाह क्या संगीत है।’

(iv) मानव जीवन अति जटिल है। कई बार हम ऐसे चौराहे पर आ खड़े होते हैं कि हमें कोई भी राह ठीक नहीं लगती। उस रात भी ऐसा ही हुआ था। गाँव के नंबरदार हंसराज को आधी रात अपने घर पर पिताजी से बात करते सुना तो मन उधेड़ बुन में फँस गया। कई दिन नंबरदार के अहाते में मंडप सज रहा था। उनकी बेटी का विवाह होने जा रहा था। शहर से कई कारीगर बुलवाकर तैयारियां की जा रही थीं। कहता था कि लड़की की शादी ऐसी धूमधाम से करेगा कि पूरा गाँव देखता रह जाएगा। अब यह नई बात सामने आई कि आकांक्षा भाग गई। आकांक्षा मेरी बहन सुमति के साथ टांडा के राजकीय कॉलेज में पढ़ती है।

दोनों बी. कॉम अंतिम वर्ष में है। वह तो पढ़ाई में बहुत अच्छी थी। बोल-चाल और आचार-विचार भी बढ़िया था। किसी ने कभी कल्पना भी नहीं की होगी कि ऐसी सुघड़ और सुशील कन्या इस प्रकार वधूवेश में पिता की पगड़ी रौंदकर भाग जाएगी। तभी सारा घर जाग गया। सुमति भी दूसरे दरवाजे का पट पकड़कर खड़ी सुन रही थी। मम्मी ने उसके कंधे पर हाथ रखकर वत्सल-भाव जताया। आकांक्षा का भाग जाना सुमति के लिए कठिन परीक्षा का विषय बन गया। यह कैसा विधि का विधान है कि जिस वर के विषय में कभी सोचा न हो, जिसे कभी देखा न हो और जिसका कभी विचार न किया हो, उसके साथ फेरे ले लिए जाएँ।

तभी पिता जी भीतर आ गए। हमें संकेत से बुलाकर सबसे पिछले कमरे में ले गए और सारा मामला समझाया। मम्मी ने तुनककर कहा-“हम कोई भिखारी तो नहीं…. मजबूर भी नहीं….बेटी में कोई दोष भी नहीं… और फिर कोई बूढ़ी भी नहीं हो गई कि इस तरह किसी राह चलते के साथ बाँध दें।” इस पर पिता जी बोले-“थोड़ा उस आदमी की इज्ज़त का भी सोचो जो पगड़ी बाँधकर पुत्र के सिर पर सेहरा सजवाकर बहू लेने आया था।

कहते हैं कि वह नकोदर का ऐसा व्यापारी है जिसकी गिनती पहले दस अमीरों में होती है। कोई ऐरा-गैरा नहीं है।” बात समझ में आते ही मेरे मन में योजना आ गई । मैं जानता था कि लड़का मेरी बहन के लिए अच्छा सिद्ध होगा। मुझे नत्थू ने यह सब तब बताया था जब हम सत्ते की बरात में नकोदर गए थे। तब हमें कहाँ पता था कि इसी घर से हमारा रिश्ता जुड़ने का अवसर आ जाएगा।’ . “वाह जी! आपने रिश्ता पक्का भी कर डाला?” मम्मी के तेवर तीखे हो गए। इस पर पिता जी ने कहा”मैं जबरदस्ती के सौदे में विश्वास नहीं रखता। हम चारों लोग यहाँ इकट्ठे हैं। पूरा परिवार है। यह छुटकू भी कोई छोटा नहीं है-बारहवीं में पढ़ रहा है-तुम सब सोचकर फैसला करो। पूरी रात अपनी है।

लड़का सरकारी कॉलेज में प्रोफेसर है-ऊँचा खानदान है-फिर देखने में भी, कहते हैं कि खूबसूरत है।” इस पर सभी चुप हो गए। एक क्षण भर पूरे कमरे में सन्नाटा छाया रहा। तब मुझे युक्ति सूझी। मैंने कहा “जिसकी बात हो रही है, उसे भी तो कुछ कहना चाहिए कि नहीं?” यह सुनकर सभी हँस पड़े। सुमति भी जोर से हँस दी। अब मम्मी ने कहा-“हाँ भई, बताओ सुमति… तुम क्या सोचती हो.. कुछ तो बताओ।” सुमति शर्मा गई और उठकर अपने कमरे में चली गई। मैंने तुरंत पीछा किया और आनन-फानन में उसे लड़के के बारे में बताया और आश्वस्त कर दिया कि वह उस घर में सुखी रहेगी। वह भी मेरी योजना में शामिल हो गई तब मैं उसे लेकर मम्मी-पापा के पास ले गया।

सुमति कुछ मिनट नीचे की ओर देखती रही। फिर साहस करके बोली-“आकांक्षा के साथ देखा था। वह अपनी मौसी के साथ कॉलेज में आया था। दशहरे से पहले की बात है। है तो भला… देखने में भी ठीक है… और कोई राजकुमार थोड़ी आएगा मुझे ब्याहने।” यह सुनकर पिता जी ने सुमति को गले से लगा लिया। हम सब समझ गए। चारों बैठक में आ गए। सारा हाल सुनाया तो वे बोले-“लड़का देखना हो तो यहीं बुलवा दूँ?” मम्मी ने मना कर दिया। तब नंबरदार ने कहा-“तो फिर ठीक है। लड़की को जो भी कपड़े घर में हों, पहनाइए। मैं जाकर शुभ सूचना देकर आता हूँ।

लड़के वालों ने सचमुच हमें कुछ भी प्रबंध नहीं करने दिया। नंबरदार जी ने भी पिता जी से कहा कि उसका दुर्भाग्य है कि लड़की मुँह पर कालिख पोत कर चली गई। अब सारा मंडप और सारा प्रबंध वे सुमति के लिए दान करते हैं। घर से भागी लड़कियों को कोई दहेज नहीं देता। सारा गहना-वस्त्र-बर्तन अब सुमति ले जाएगी। भोज पर भी कुछ खर्च करने की जरूरत नहीं। इस प्रकार मेरी योजना सफल हुई। रात के तीन बज गए तो सुमति और दूल्हे को मंडप में लाया गया।

सुमति जल्दबाजी में तैयार हुई थी परंतु किसी दुल्हन से कम नहीं लग रही थी। उसके चेहरे पर नूर था। अंततः विवाह की रस्में होने लगीं। चार बजकर चालीस मिनट पर विवाह संपन्न हुआ तो सभी ने फूल बरसाकर आशीर्वाद दिया। एक-दूसरे को बधाइयाँ दी जाने लगीं। पिता जी ने एक लाख चालीस हजार का चैक लिखकर दूल्हे की झोली में डालकर कहा-“मेरे खाते में इतने ही पैसे हैं बेटा…..इसे कबूल कीजिए। आगे फिर देखा जाएगा।”

(v) प्रस्तुत चित्र विद्यालय जा रहे विद्यार्थियों का है। चित्र से पता चलता है कि ये विद्यार्थी पाँचवीं से आठवीं कक्षा तक के विद्यार्थी रहे होंगे। सभी विद्यार्थी प्रसन्न एवं गर्व से भरे दिखाई दे रहे हैं क्योंकि उनके हाथों में टैब (टैबलेट) नामक अत्याधुनिक उपकरण है। वर्तमान युग विज्ञान का युग है। नई-नई तकनीकें आविष्कृत हो रही हैं। अब वह युग गया, जब विद्यार्थी स्लेटें या तख्तियाँ लेकर विद्यालय जाते थे और अपना सारा कार्य व अभ्यास कार्य इन्हीं पर किया करते थे। आज विज्ञान के आविष्कारों ने सारी दुनिया ही बदल दी है। अन्य क्षेत्रों की तरह शिक्षा के माध्यमों में भी भारी परिवर्तन हुए हैं। इंटरनेट की सुविधा, मोबाइल, टैबलेट, लैपटॉप आदि इसी प्रकार के शैक्षिक माध्यम हैं।

प्रस्तुत चित्र के बच्चे सौभाग्यशाली है कि वे इस प्रकार के आधुनिक उपकरणों द्वारा अध्ययन कर सकते हैं। आज का नन्हा-सा विद्यार्थी भी टैब पर उपलब्ध इंटरनेट की सुविधा लेना सीख रहा है। टैब और इंटरनेट ने ज्ञान क्षेत्र में अनोखी क्रांति की है। इंटरनेट एक ऐसी व्यवस्था है जो की सहायता से संसार के सभी लोगों को जोड़ने का काम करती है। दुनिया के प्रत्येक विषय प्रत्येक स्थान की जानकारी इंटरनेट पर उपलब्ध है।

इंटरनेट के मुख्य भाग हैं-वर्ल्डवाइड वेब; सोशल नेटवर्किंग, चैटरूम, न्यूज़ग्रुप, गोफर एवं एफ. टी. पी. साइट्स । वर्ल्डवाइड वेब (वेबसाइट) द्वारा हम संसार के किसी भी कोने की जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। सोशल नेटवर्किंग (ई-मेल) के द्वारा हम अपने विचारों का आदान-प्रदान कर सकते हैं। इसका तीसरा भाग चैटरूम है जो आपसी वार्तालाप का साधन है। न्यूज़ग्रुप इंटरनेट का वह भाग है जो हमें सभी जगह की घटनाओं के समाचार संबंधी सूचनाएँ देता है।

गोफर एवं. एफ.टी.पी. साइट्स इंटरनेट की वह सुविधा है जिसकी मदद से हम किसी भी फाइल कागज़ आदि को उसी रूप में भेज सकते हैं। कम्यूनिकेशन प्रोग्राम संप्रेषण का साधन है। ज्ञान, विज्ञान, शिक्षा, फ़िल्म, संगीत, विवाह, नौकरी चाहिए या खरीददारी या वस्तुओं की बिक्री, रेल का टिकट लेना हो या होटल बुकिंग, देश-विदेश के समाचार, मौसम, ज्योतिष, व्यापार-व्यवसाय आदि सभी के लिए इसने अपने द्वार खोल दिए हैं।

अपने ज्ञान में वृद्धि तथा दूसरों तक जानकारियाँ पहुँचाने का यह सरल तथा तीव्र माध्यम है। बच्चे प्रायः टैब का उपयोग गेम खेलने या मनोरंजन के लिए कर रहे हैं। टैब पर सभी सुविधाएँ होने के बावजूद आज कुछ दुष्परिणाम भी सामने आ रहे हैं। इंटरनेट के बढ़ते प्रचलन के कारण लोग पुस्तकों से दूर होते जा रहे हैं। पहले लोग समय निकालकर अपने सगे-संबंधियों को पत्र या मांगलिक अवसर पर कार्ड भेजा करते थे। समय की कमी और अत्यधिक कार्य व्यस्तता के कारण ये परंपराएँ लगभग समाप्त ही हो गई हैं।

इसके अतिरिक्त इसके द्वारा आज युवा वर्ग दिग्भ्रमित हो रहा है। अफ़वाहें फैलाने, धमकियाँ देने तथा अनेक गुप्त जानकारियाँ प्राप्त की जा सकती हैं। अश्लीलता के प्रचारप्रसार तथा सांस्कृतिक प्रदूषण में भी इसका बहुत बड़ा हाथ है। इंटरनेट के लगातार प्रयोग करने से व्यक्ति के स्वास्थ्य पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है। आए दिन बच्चों के विक्षिप्त होने के समाचार आ रहे हैं। आज इंटरनेट हमारे जीवन का अनिवार्य अंग बन गया है। इसके बिना जीवन अधूरा-सा लगता है। हमें इसका सार्थक सदुपयोग करना चाहिए। विद्यार्थियों को और भी अधिक सचेत व सतर्क रहने की आवश्यकता है क्योंकि इस किशोर आयु में उन्हें अच्छे-बुरे की समझ नहीं होती।

Question 2.
Write a letter in Hindi in approximately 120 words on any one of the topics given below : [7]
निम्नलिखित में से किसी एक विषय पर हिंदी में लगभग 120 शब्दों में पत्र लिखिए :
(i) आप अपने विद्यालय के सफाई अभियान दल’ के नेता हैं। एक योजना के अंतर्गत आप छात्रों के एक दल को किसी इलाके में सफाई के प्रति जागरूक करने हेतु ले जाना चाहते हैं। अपने विद्यालय के प्रधानाचार्य प्रधानाचार्या जी को इसके लिए स्वीकृति हेतु पत्र लिखिए।
(ii) पिछले महीने कुछ प्रयासों द्वारा आपके विद्यालय के छात्रों ने कुछ धनराशि एकत्रित करके मूक-बधिर (deaf and dumb) विद्यालय के विद्यार्थियों की सहायता की थी। इसका वर्णन करते हुए अपने मित्र को एक पत्र लिखिए और बताइए कि हमें समाज के विकलांग लोगों के प्रति कैसा व्यवहार रखना चाहिए व उनकी सहायता के लिए किस प्रकार के प्रयास करने चाहिए।
Answer :
(i) सेवा में
प्रधानाचार्य महोदय,
……. उच्चतर माध्यमिक विद्यालय,
……. नगर।
मान्य महोदय,
सविनय निवेदन है कि मैं कक्षा दसवीं ‘अ’ का छात्र हूँ और विद्यालय के ‘सफाई अभियान दल’ का नेता हूँ। गत सप्ताह नगर के स्वच्छता स्वयं सेवक संघ के सचिव ने हमारे समक्ष प्रस्ताव रखकर तीर्थाटन बस्ती में सफाई अभियान चलाने की प्रेरणा दी। वे हमारे सेवा दल को प्रोत्साहित करने के लिए अपना तीस सदस्यों का दल तथा अल्पाहार की सामग्री भेजेंगे।
मेरी आपसे प्रार्थना है कि हमारे विद्यालय के ‘सफाई अभियान दल’ के एक सौ छात्रों को इस अभियान में शामिल होने की अनुमति प्रदान की जाए। अति धन्यवादी होऊँगा।
आपका आज्ञाकारी शिष्य,
क.ख. ग.
कक्षा दसवीं ‘अ’
दिनांक – 6 जुलाई, 20…..

(ii) परीक्षा भवन
………… नगर।
20 जनवरी, 20….।
प्रिय मित्र सुकेत,
नमस्कार।
मैं यह पत्र एक विशेष उद्देश्य से लिख रहा हूँ। गत मास हमारे विद्यालय के कुछ छात्रों ने विशेष प्रयास करके चंदे के रूप में तेरह हज़ार रुपए की धनराशि एकत्र की थी। स्वयं सेवक छात्रों के इस प्रयास को प्रधानाचार्य महोदय ने विशेष रूप में पसंद किया और इसे जनहित कार्य में लगाने की प्रेरणा दी। जब हमारी समिति के सदस्यों की बैठक हुई तो सभी ने एकमत होकर नगर के मूक-बधिर विद्यालय के विद्यार्थियों की सहायता में उक्त धनराशि लगाने का निर्णय लिया। सात सदस्यों का एक दल गठित किया गया जो हमारे सामाजिक विज्ञान के अध्यापक के साथ जाकर उक्त धनराशि को सुपात्र विकलांग विद्यार्थियों में बाँटेगा।
मित्र, मुझे मूक-बधिर विद्यालय में जाकर ऐसा अनुभव हुआ कि हम समर्थ व स्वस्थ लोगों को उस समाज की अवश्य सहायता करनी चाहिए जो शारीरिक व मानसिक रूप से विकलांग है। अब हमने निर्णय लिया है कि अपनी-अपनी कक्षा में एक दान-पात्र रखा जाएगा जिस में एकत्र राशि ऐसे ही लोगों पर खर्च होगी। मेरा प्रस्ताव है कि आपको भी अपने नगर में ऐसा प्रयास करना चाहिए।

तुम्हारा अभिन्न मित्र,
क. ख. ग.

Question 3.
Read the passage given below and answer in Hindi the questions that follow, using your own words as far as possible :
निम्नलिखित गद्यांश को ध्यान से पढ़िए तथा उसके नीचे लिखे गए प्रश्नों के उत्तर हिंदी में लिखिए। उत्तर यथासंभव आपके अपने शब्दों में होने चाहिए :
सूर्य अस्त हो रहा था। पक्षी चहचहाते हुए अपने नीड़ की ओर जा रहे थे। गाँव की कुछ स्त्रियाँ अपने घड़े लेकर कुएँ पर जा पहुँची। पानी भरकर कुछ स्त्रियाँ तो अपने घरों को लौट गई, परंतु चार स्त्रियाँ कुएँ की पक्की जगत पर ही बैठकर आपस में बातचीत करने लगीं। तरह-तरह की बातचीत करते-करते बात बेटों पर जा पहुँची। उनमें से एक की उम्र सबसे बड़ी लग रही थी। वह कहने लगी-“भगवान सबको मेरे जैसा ही बेटा दे। वह लाखों में एक है। उसका कंठ बहुत मधुर है। उसके गीत को सुनकर कोयल और मैना भी चुप हो जाती है। सच में मेरा बेटा तो अनमोल हीरा है।”

उसकी बात सुनकर दूसरी अपने बेटे की प्रशंसा करते हुए बोली-“बहन मैं तो समझती हूँ कि मेरे बेटे की बराबरी कोई नहीं कर सकता। वह बहुत ही शक्तिशाली और बहादुर है। वह बड़े-बड़े पहलवानों को भी पछाड़ देता है। वह आधुनिक युग का भीम है। मैं तो भगवान से कहती हूँ कि वह मेरे जैसा बेटा सबको दे।” दोनों स्त्रियों की बात सुनकर तीसरी भला क्यों चुप रहती ? वह भी अपने को रोक न सकी। वह बोल उठी”मेरा बेटा साक्षात् बृहस्पति का अवतार है। वह जो कुछ पढ़ता है, एकदम याद कर लेता है। ऐसा लगता है बहन, मानों उसके कंठ में सरस्वती का वास हो।”

तीनों की बात सुनकर चौथी स्त्री चुपचाप बैठी रही। उसका भी एक बेटा था। परंतु उसने अपने बेटे के बारे में कुछ नहीं कहा। जब पहली स्त्री ने उसे टोकते हुए पूछा कि उसके बेटे में क्या गुण है, तब चौथी स्त्री ने सहज भाव से कहा”मेरा बेटा ना गंधर्व-सा गायक है, न भीम-सा बलवान और न ही बृहस्पति-सा बुद्धिमान।” यह कह कर वह शांत बैठ गई। कुछ देर बाद जब वे घड़े सिर पर रखकर लौटने लगीं, तभी किसी के गीत का मधुर स्वर सुनाई पड़ा, गीत सुनकर सभी स्त्रियाँ ठिठक गईं। पहली स्त्री शीघ्र ही बोल उठी-“मेरा हीरा गा रहा है। तुम लोगों ने सुना, उसका कंठ कितना मधुर है।” तीनों स्त्रियाँ बड़े ध्यान से उसे देखने लगी। वह गीत गाता हुआ उसी रास्ते से निकल गया।

उसने अपनी माँ की तरफ ध्यान नहीं दिया। थोड़ी देर बाद दूसरी का बेटा दिखाई दिया। दूसरी स्त्री ने बड़े गर्व से कहा, “देखो मेरा बलवान बेटा आ रहा है। वह बातें कर ही रही थी कि उसका बेटा भी उसकी ओर ध्यान दिए बगैर निकल गया।” तभी तीसरी स्त्री का बेटा उधर से संस्कृत के श्लोकों का पाठ करता हुआ निकला। तीसरी ने बड़े गद्गद् स्वर में कहा “देखो, मेरे बेटे के कंठ में सरस्वती का वास है। वह भी माँ की ओर देखे बिना आगे बढ़ गया। वह अभी थोड़ी दूर गया होगा कि चौथी स्त्री का बेटा भी अचानक उधर से आ निकला।

वह देखने में बहुत सीधा-सादा और सरल प्रकृति का लग रहा था। उसे देखकर चौथी स्त्री ने कहा, “बहन, यही मेरा बेटा है।” तभी उसका बेटा पास आ पहुँचा। अपनी माँ को देखकर रुक गया और बोला, “माँ लाओ मैं तुम्हारा घड़ा पहुँचा दूँ। माँ ने मना किया, फिर भी उसने माँ के सिर से पानी का घड़ा उतारकर अपने सिर पर रख लिया और घर की ओर चल पड़ा। तीनों स्त्रियाँ बड़े ही आश्चर्य से देखती रहीं। एक वृद्ध महिला बहुत देर से उनकी बातें सुन रही थी। वह उनके पास आकर बोली, “देखती क्या हो? यही सच्चा हीरा है।”
(i) पहली तथा दूसरी स्त्री ने अपने-अपने बेटे के विषय में क्या कहा? [2]
(ii) तीसरी स्त्री ने अपने बेटे को ‘बृहस्पति का अवतार’ क्यों कहा? [2]
(iii) पहली स्त्री द्वारा पूछे जाने पर चौथी स्त्री ने क्या कहा? [2]
(iv) चौथी स्त्री के बेटे ने अपनी माँ के साथ कैसा व्यवहार किया, यह देखकर तीनों स्त्रियों को कैसा लगा? [2]
(v) बच्चों को अपने माता-पिता के साथ कैसा व्यवहार करना चाहिए ? समझाइए। [2]
Answer :
(i) पहली स्त्री ने अपने बेटे की प्रशंसा करते हुए उसे मधुर गायक बताया। दूसरी स्त्री ने अपने पुत्र को शक्तिशाली योद्धा बताया जो बड़े-बड़े पहलवानों को हरा देता है।
(ii) तीसरी स्त्री ने अपने पुत्र को बृहस्पति का अवतार बताया क्योंकि उसे पढ़ते ही सब कुछ कंठस्थ हो जाता था। जैसे उसके गले में सरस्वती का निवास हो।
(iii) पहली स्त्री द्वारा पूछे जाने पर चौथी स्त्री ने कहा कि उसके बेटे में उक्त तीनों स्त्रियों के पुत्रों जैसा कोई भी गुण नहीं है।
(iv) चौथी स्त्री के बेटे ने अपनी माँ का सिर पर धरा पानी का घड़ा ले लिया ताकि उसे घर पहुँचाने में सहायता कर सके। यह सहयोग व सम्मान देखकर तीनों स्त्रियों को आश्चर्य हुआ।
(v) बच्चों को अपने माता-पिता की हर संभव सहायता करनी चाहिए। छोटे से छोटे काम में दिया गया सहयोग माता-पिता को प्रसन्न करता है। यह ऐसी भक्ति है जिसका फल सदैव अनुकूल तथा सकारात्मक होगा।

Question 4.
Answer the following according to the instructions given :
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर निर्देशानुसार लिखिए :
(i) निम्नलिखित शब्दों में से दो शब्दों के विलोम लिखिए : कीर्ति, निर्मल, विजय, निर्दोष ।
(ii) निम्नलिखित शब्दों में से किसी एक शब्द के दो पर्यायवाची शब्द लिखिए : धनवान, किनारा, दूध।
(ii) निम्नलिखित शब्दों से विशेषण बनाइए : अपेक्षा, गुण।
(iv) निम्नलिखित शब्दों में से किन्हीं दो शब्दों के शुद्ध रूप लिखिए : प्रदर्षनी, लच्छमी, अपरीचीत।
(v) निम्नलिखित मुहावरों में से किसी एक की सहायता से वाक्य बनाइए : आसमान से बातें करना, उड़ती चिड़िया पहचानना।
(vi) कोष्ठक में दिए गए निर्देशानुसार वाक्यों में परिवर्तन कीजिए :
(a) मोहन और रमेश सच्चे मित्र थे। ‘ (‘मित्रता’ शब्द का प्रयोग कीजिए।)
(b) मुझसे कोई भी बात कहने में संकोच न करें। (रेखांकित के लिए एक शब्द का प्रयोग करते हुए वाक्य को पुनः लिखिए।)
(c) शिक्षक ने अपने शिष्य को आदेश दिया। (वचन बदलिए।)
Answer :
(i) कीर्ति – अपकीर्ति
निर्मल – मैला
विजय – पराजय
निर्दोष – दोषपूर्ण

(ii) धनवान – धनी, धनपति
किनारा – कूल, तट
दूध – पय, क्षीर

(iii) अपेक्षा – अपेक्षित
गुण – गुणी/गुणज्ञ

(iv) प्रदर्शिनी, लक्ष्मी, अपरिचित
(v) आसमान से बातें करना- महाराणा प्रताप का घोड़ा चेतक आसमान से बातें करता था। उड़ती चिड़िया पहचानना – सुधीर इतना कुशाग्रबुद्धि है कि उड़ती चिड़िया को पहचान लेता है।
(vi) (a) मोहन और रमेश में सच्ची मित्रता थी।
(b) मुझसे कोई भी बात निस्संकोच करें।
(c) शिक्षकों ने अपने शिष्यों को आदेश दिए।

SECTION – B (40 Marks)
Attempt four questions from this Section. You must answer at least one question from each of the two books you have studied and any two other questions.

साहित्य सागर – संक्षिप्त कहानियाँ
(Sahitya Sagar – Short Stories)

Question 5.
Read the extract given below and answer in Hindi the questions that follow :
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़िए और उसके नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर हिंदी में लिखिए :
आनंदी की त्यौरी चढ़ गई। झुंझलाहट के मारे बदन में ज्वाला-सी दहक उठी। बोली, “जिसने तुमसे यह आग लगाई है, उसे पाऊँ तो मुँह झुलस दूं।”
[‘बड़े घर की बेटी’ – प्रेमचंद]
[Bade Ghar Ki Beti – Premchand]
(i) आनंदी की त्यौरी क्यों चढ़ी हुई थी ? वह किसका इंतजार कर रही थी ? [2]
(ii) श्रीकंठ सिंह ने आनंदी से क्या जानना चाहा ? [2]
(iii) इससे पहले लालबिहारी और बेनीमाधव सिंह श्रीकंठ सिंह से क्या कह चुके थे ? [3]
(iv) आनंदी से घटना का हाल जानकर श्रीकंठ सिंह को कैसा लगा? उन्होंने अपने पिता से क्या कहा? [3]
Answer :
(i) आनंदी का अपने देवर लालबिहारी के साथ विवाद हो गया था। इसी कारण उसकी त्यौरी चढ़ी हुई थी। वह अपने पति श्रीकंठ सिंह का इंतजार कर रही थी।
(ii) श्रीकंठ सिंह ने अपनी पत्नी आनंदी से जानना चाहा था कि घर में मचे उपद्रव का वास्तविक कारण क्या था ?
(iii) इससे पहले बेनीमाधव सिंह ने लालबिहारी की ओर से साक्षी देते हुए कहा कि बहू-बेटियों का यह स्वभाव अच्छा नहीं कि वे पुरुषों के मुँह लगें। लालबिहारी का तर्क था कि आनंदी अपने मायके का रौब झाड़ती रहती है।
(iv) आनंदी से घटना की जानकारी लेकर श्रीकंठ सिंह को बहुत बुरा लगा और वह अलग घर बसाने का निर्णय लेकर अपने पिता से कहने लगा कि उसका इस संयुक्त परिवार में निर्वाह नहीं होगा।

Question 6.
Read the extract given below and answer in Hindi the questions that follow :
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़िए और उसके नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर हिंदी में लिखिए :
“रात को बड़े जोर का झक्कड़ चला। सेक्रेटेरियट के लॉन में जामुन का पेड़ गिरा। सुबह को जब माली ने देखा, तो उसे पता चला कि पेड़ के नीचे एक आदमी दबा पड़ा है।”
[“जामुन का पेड़’ – कृष्ण चंदर]
[Jamun Ka Ped – Krishna Chander]
(i) माली ने यह देखकर क्या किया और क्यों ? [2]
(ii) पहले दूसरे और तीसरे क्लर्क ने क्या कहा ? क्या तीसरे क्लर्क को उस दबे हुए आदमी से सहानुभूति थी? [2]
(iii) माली ने क्या सुझाव दिया ? मोटे चपरासी की बात सुनकर माली क्या बोला ? [3]
(iv) कहानी के अंत में क्या हुआ था ? देर से मिलने वाला न्याय महत्त्वहीन होता है कैसे? [3]
Answer :
(i) माली ने पेड़ के नीचे दबे आदमी को देखा तो वह दौड़ा-दौड़ा चपरासी के पास गया। चपरासी क्लर्क के पास और क्लर्क सुपरिटेंडेंट के पास गया।
(ii) पहले क्लर्क ने जामुन के फलदार पेड़ की प्रशंसा की, दूसरे ने उसकी रसीली जामुनों की प्रशंसा की तो तीसरे ने कहा कि फलों के मौसम में वह जामुनें ले जाता था जिन्हें उसके बच्चे चाव से खाते थे।
(iii) माली ने सुझाव दिया कि पेड़ को हटाकर उसके नीचे दबे व्यक्ति को जल्दी से निकाल लेना चाहिए। यह सुनकर एक सुस्त कामचोर और मोटा चपरासी बोला कि पेड़ का तना बहुत मोटा और वज़नी है।
(iv) कहानी के अंत में कागजी कार्यवाही पूरी होते ही कवि के जीवन की फाइल भी पूर्ण हो जाती है। – इससे सिद्ध होता है कि व्यवस्था की प्रक्रिया मानववादी न होकर कठोर व मानवविरोधी सिद्ध होती है। व्यावहारिक उपचार न किए जाने से प्रक्रिया की प्रविधि ने एक मानव का अंत कर डाला।

Question 7.
Read the extract given below and answer in Hindi the questions that follow :
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़िए और उसके नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर हिंदी में लिखिए :
“पर, ‘सब दिन होत न एक समान’ अकस्मात् दिन फिरे और सेठ को गरीबी का मुँह देखना पड़ा। संगीसाथियों ने भी मुँह फेर लिया और नौबत यहाँ तक आ गई कि सेठ व सेठानी भूखे मरने लगे।”
[महायज्ञ का पुरस्कार – यशपाल]
[Mahayagya Ka Puraskar – Yashpal]
(i) अकस्मात् बुरा समय किसका आ गया था तथा बुरा समय आने से पहले उसकी दशा कैसी थी? [2]
(ii) अपना बुरा समय दूर करने के लिए सेठ ने क्या उपाय सोचा ? इस उपाय के लिए उन्हें किसके पास जाना पड़ा? [2]
(iii) सेठ के मार्ग में कौन-सा महायज्ञ किया था। क्या वह वास्तव में महायज्ञ था। समझाकर लिखिए। [3]
(iv) कहानी का उद्देश्य लिखिए। [3]
Answer:
(i) धनी सेठ का बुरा समय आ गया था। इससे पहले उसकी दशा अति विनम्र, उदार और धर्मपरायण दानी सेठ की थी। उसके द्वार से कोई खाली न जाता था। वह यज्ञ करवाया करता था।
(ii) अपनी बुरी दशा दूर करने के लिए सेठ ने एक यज्ञ बेचने का उपाय सोचा। उसने कुंदनपुर की सेठानी के पास जाकर एक यज्ञ बेचने का निर्णय किया।
(iii) सेठ ने मार्ग में एक भूखे कुत्ते को अपनी चारों रोटियाँ खिला दी और स्वयं केवल जल से संतोष किया। कुत्ता रोटी की शक्ति पाकर समर्थ व स्वस्थ हो उठा। यही सेठ का महायज्ञ था क्योंकि इसमें सच्ची सेवा-भावना थी न कि अपने धनी होने का घमंड।
(iv) प्रस्तुत कहानी का उद्देश्य दान और परोपकार के सच्चे स्वरूप से परिचित कराना है। यज्ञ कमाने की इच्छा से व धन-दौलत लुटाकर किए गए दान-यज्ञ आदि से पुण्य की प्राप्ति नहीं होती। निःस्वार्थ भाव से, अभिमान और अहं त्यागकर किया गया दान या यज्ञ ही वास्तव में सच्चा महायज्ञ है।
साहित्य सागर – पद्य भाग
(Sahitya Sagar – Poems)

Question 8.
Read the extract given below and answer in Hindi the questions that follow :
निम्नलिखित पद्यांश को पढ़िए और उसके नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर हिंदी में लिखिए :
“लाठी में गुण बहुत हैं, सदा राखिये संग। गहरि, नदी, नारी जहाँ, वहाँ बचावै अंग।। वहाँ बचावै अंग, झपटि कुत्ता कहँ मारे। दुश्मन दावागीर, होयँ तिनहूँ को झारै।। कह ‘गिरिधर कविराय’ सुनो हो धूर के बाठी।। सब हथियार के छाँड़ि, हाथ महँ लीजै लाठी।।”
[कुंडलियाँ – गिरिधर कविराय]
[Kundaliya – Giridhar Kavi Rai]
(i) इस कुंडली में किसकी उपयोगिता बताई गई है ? कवि ने किस समय मनुष्य को लाठी रखने का परामर्श दिया है? [2]
(ii) लाठी हमारे शरीर की सुरक्षा किस प्रकार करती है [2]
(iii) लाठी किन तीनों से निपटने में सहायक होती है और किस प्रकार? [3]
(iv) कवि सब हथियार छोड़कर लाठी लेने की बात क्यों कर रहे हैं? अपने विचार व्यक्त करते हुए कुंडलियाँ लेखन का उद्देश्य स्पष्ट कीजिए। [3]
Answer :
(i) प्रस्तुत कुंडली में कवि ने लाठी के गुणों तथा उपयोगिता पर प्रकाश डाला है। कवि ने गहरी नदी, नाला आदि से सामना होने पर लाठी की उपयोगिता का वर्णन किया है। लाल
(ii) यदि कुत्ते या शत्रु से कभी भी सामना हो जाए और उस समय हमारे पास लाठी हो, तो किसी भी प्रकार की शारीरिक हानि नहीं हो सकती।
(iii) लाठी कुत्ते, दुश्मन और नदी नाले से निपटने में सहायक होती है। कुत्ते और दुश्मन को लाठी से भगाया जा सकता है। नदी-नाले की गहराई नापकर लाठी द्वारा उन्हें पार किया जा सकता है।
(iv) कवि लाठी को सब हथियारों से ऊपर मानते हैं। लाठी से गहरी नदी-नाले का सामना किया जा सकता है। इससे कुत्ते और दुश्मन को डरा या धमकाकर भगा सकते हैं। अतः यह हथियार सहज व कारगर सिद्ध होता है।

Question 9.
Read the extract given below and answer in Hindi the questions that follow :
निम्नलिखित पद्यांश को पढ़िए और उसके नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर हिंदी में लिखिए :
“चाट रहे जूठी पत्तल वे कभी सड़क पर खड़े हुए, और झपट लेने को उनसे कुत्ते भी हैं अड़े हुए। ठहरो, अहो मेरे हृदय में है अमृत, मैं सींच दूंगा। अभिमन्यु जैसे हो सकोगे तुम, तुम्हारे दुःख मैं अपने हृदय में खींच लूँगा।”
[भिक्षुक – सूर्यकान्त त्रिपाठी – “निराला’]
[Bhikshuk – Suryakanth Tripathi – ‘Nirala’]
(i) पहली दो पंक्तियों में कवि ने क्या दृश्य प्रस्तुत किया है ? [2]
(ii) इस भावुक दृश्य से हमारे हृदय में क्या भाव उत्पन्न होते हैं ? [2]
(iii) क्या भिक्षुकों की मदद करना मानवीय धर्म नहीं है ? यहाँ अभिमन्यु का उदाहरण कवि ने क्यों दिया [3]
(iv) प्रस्तुत कविता का केंद्रीय भाव लिखिए। [3]
Answer:
(i) कवि ने प्रथम दो पंक्तियों में सड़क पर जूठी पत्तल चाट रहे लोगों तथा उनसे वे पत्तलें छीन लेने के प्रयास में सक्रिय कुत्तों का वर्णन किया है।
(ii) इन भावुक दृश्य से हमारे हृदय में करुणा व संवेदना के भाव उत्पन्न होते हैं। इसके मूल में सामाजिक विषमता का वर्णन हुआ है।
(iii) भिक्षुकों की सहायता करना मानवीय धर्म हो सकता है यदि उन्हें सकारात्मक रोज़गार की ओर प्रेरित किया जाए। कवि ने भिक्षुक को प्रेरणा देते हुए अभिमन्यु की भाँति अपने अधिकारों के लिए संघर्ष करने की प्रेरणा की है।
(iv) प्रस्तुत कविता में कवि ने भिक्षुक की दयनीय दशा का वर्णन करते हुए सामाजिक वर्ग-भेद की ओर संकेत किया है। कवि उस व्यवस्था को कोस रहे हैं जिसमें किसी भी सामाजिक को भीख माँगने जैसा घृणित व अपमानजनक कार्य करना पड़ता है।

Question 10.
Read the extract given below and answer in Hindi the questions that follow :
निम्नलिखित पद्यांश को पढ़िए और उसके नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर हिंदी में लिखिए :
“मैं पूर्णता की खोज में दर-दर भटकता ही रहा प्रत्येक पग पर कुछ-न-कुछ रोड़ा अटकता ही रहा पर हो निराशा क्यों मुझे ? जीवन इसी का नाम है। चलना हमारा काम है।”
[चलना हमारा काम है – शिवमंगल सिंह ‘सुमन’]
[Chalna Hamara Kaam Hai – Shiv Mangal Singh Suman’]
(i) कवि ने मनुष्य के जीवन के बारे में क्या कहा है तथा क्यों ? [2]
(ii) कवि के अनुसार जीवन का महत्त्व किसमें है ? स्पष्ट कीजिए। [2]
(iii) जीवन में सुख-दुख और आशा-निराशा के प्रति हमारा क्या दृष्टिकोण होना चाहिए ? अपने दुखों और निराशा के लिए हमें किसको दोष देना उचित नहीं है तथा क्यों ? समझाकर लिखिए। [3]
(iv) प्रस्तुत कविता के माध्यम से कवि ने पाठकों को क्या संदेश दिया है ? [3]
Answer :
(i) कवि शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ ने जीवन को अपूर्ण कहा है। जीवन में सुख-दुख आते रहते हैं। कभी कुछ मिल जाता है तो कभी कुछ खो जाता है। आशा-निराशा निरंतर सक्रिय रहती है। ऐसा जीवन पूर्ण नहीं कहा जा सकता।
(ii) कवि के अनुसार जीवन का महत्त्व पथ में आने वाली बाधाओं के बावजूद निरंतर अग्रसर होने में है। बाधाओं से निराश नहीं होना चाहिए क्योंकि इन बाधाओं को पार करना ही तो जीवन है।
(iii) कवि के अनुसार आशा-निराशा एवं सुख-दुख जीवन के अनिवार्य अंग है। अपने दुखों और निराशा के लिए विधाता को दोष देना उचित नहीं है क्योंकि दृढ़ता से अविचल भाव से पथ की बाधाओं या कठिनाइयों को दूर करना ही जीवन है।
(iv) प्रस्तुत पंक्तियों में कवि का मानना है कि जीवन के पथ पर अनेक प्रकार की कठिनाइयाँ आया करती हैं। अनेक साथी हमें बीच मार्ग छोड़कर चले जाते हैं। इन बातों से निराश नहीं होना चाहिए। जो राही अपने पथ पर निरंतर आगे बढ़ता रहेगा, उसी को सफलता प्राप्त होगी।
नया रास्ता – (सुषमा अग्रवाल)
(Naya Raasta – Sushma Agarwal)

Question 11.
Read the extract given below and answer in Hindi the questions that follow :
निम्नलिखित अवतरण को पढ़िए और उसके नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर हिंदी में लिखिए :
अमित मेज पर बैठा खाना खाने लगा। माँ भी उसके पास बैठ गईं। बैठे-बैठे वह न जाने किन विचारों में खो गईं और एकटक अमित की ओर ही देखती रहीं।
(i) माँ अमित की तरफ देखते हुए क्या सोच रही थी ? [2]
(ii) दीपक कौन है ? उन्हें किस बात का कार्ड मिला ? [2]
(iii) मधु के बारे में माँ ने अमित से क्या कहा ? [3]
(iv) माँ को घर में बहू की कमी क्यों अखरती थी ? [3]
Answer:
(i) अमित की माँ सोच रही थी कि दीपक अमित से दो वर्ष छोटा है। उसका विवाह हो रहा है। परंतु अमित उससे बड़ा होते हुए भी अभी तक शादी नहीं कर पाया था।
(ii) दीपक मधु का ममेरा भाई है। उन्हें उसकी शादी का कार्ड मिला है। शनिवार के दिन शादी और रविवार को प्रीतिभोज है।
(ii) माँ अमित से कहती है कि मधु भी अब विवाह के योग्य हो गई है। वह उसकी शादी तो करना चाहती है परंतु साथ ही यह चाहती है कि अमित की शादी पहले हो जाए क्योंकि वह मधु से सात वर्ष बड़ा है।
(iv) माँ का विचार था कि मधु के विवाह के सारे काम वह अकेले नहीं कर सकती। यदि घर में बहू हो तो काम सरल व सहज ढंग से हो जाएँगे।

Question 12.
Read the extract given below and answer in Hindi the questions that follow :
निम्नलिखित अवतरण को पढ़िए और उसके नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर हिंदी में लिखिए :”दूसरे ही क्षण मीनू उसके सामने आ गई और खुशी से उसके हाथ चूम लिये। अरे मीनू, आज तो बहुत प्रसन्न दिखाई दे रही हो। क्या बात है ? नीलिमा ने पूछा”
(i) मीनू कौन है ? उसकी प्रसन्नता का कारण क्या है ? [2]
(ii) ‘उसके’ सर्वनाम का प्रयोग किसके लिए किया गया है ? उसका संक्षिप्त परिचय दीजिए। [2]
(iii) मीनू के चेहरे पर किस बात को सोचकर उदासी छा जाती है ? मीनू की उदासी कब और किस प्रकार दूर होती है ? समझाकर लिखिए। [3]
(iv) प्रस्तुत उपन्यास का उद्देश्य स्पष्ट कीजिए। [3]
Answer :
(i) मीनू और नीलिमा दोनों सहेलियाँ हैं। मीनू दयाराम की बड़ी पुत्री है। वह रोहित तथा आशा की बड़ी बहन है। उसकी प्रसन्नता का कारण यह है कि उसका फोटो मेरठ वालों ने पसंद कर लिया है।
(ii) ‘उसके’ सर्वनाम का प्रयोग नीलिमा के लिए किया गया है। वह मीनू की सखी है और उससे कहीं अधिक सुंदर है।
(iii) मीनू के चेहरे पर उदासी छा जाती है क्योंकि उसको कई लड़कों ने विवाह के प्रसंग में देखा था परंतु किसी ने भी उसे पसंद नहीं किया था क्योंकि वह अधिक सुंदर नहीं है। मीनू की उदासी दूर हो जाती है जब उसे पता चलता है कि वह प्रथम श्रेणी में और नीलिमा द्वितीय श्रेणी में पास हुई है।
(iv) प्रस्तुत उपन्यास में दिखाया गया है कि समाज में सफलता के लिए साहस की आवश्यकता है। आज समय आ चुका है कि सभी युवतियाँ साहस व धैर्य से काम लेकर उच्च शिक्षा प्राप्त करें और दहेज की महामारी का उन्मूलन करें ताकि किसी को आत्म हत्या न करनी पड़े।

Question 13.
Read the extract given below and answer in Hindi the questions that follow :
निम्नलिखित अवतरण को पढ़िए और उसके नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर हिंदी में लिखिए :
“परंतु तुम ये तो सोचो कि आजकल शादी के बाद ही दावत दी जाती है। यदि हम प्रीतिभोज नहीं देंगे तो दुनिया वाले क्या कहेंगे और फिर बड़े घर की लकड़ी आ रही है। दावत नहीं देंगे तो सब लोग बात बनाएंगे।”
(i) उपर्युक्त कथन किसने, किस अवसर पर कहा था ? [2]
(ii) ‘बड़े घर की लड़की’ किसको कहा गया है ? उसका संक्षिप्त परिचय दीजिए। [2]
(iii) उपर्युक्त कथन के विषय में अमित के क्या विचार हैं ? वह इस शादी से सहमत क्यों नहीं है ? धनीमल जी ने शादी के प्रस्ताव के साथ क्या लालच दिया था ? [3]
(iv) आजकल के मध्यमवर्गीय परिवारों में विवाह आदि रीति-रिवाज़ों के अवसर पर होने वाले फिजूलखर्चे पर अपने विचार लिखिए। [3]
Answer :
(i) उपर्युक्त कथन अमित के पिता मायाराम ने अपनी पत्नी से कहा था। यह कथन अमित के विवाह की तैयारियों के प्रसंग में कहा गया है।
(ii) ‘बड़े घर की लड़की’ सरिता को कहा गया है। वह अमित की मंगेतर है और धनीमल की पुत्री है। धनी पिता की पुत्री होने के कारण उसकी घर के काम-काज में कोई विशेष रुचि नहीं है। उसका विचार है कि वह शादी के बाद उसके पिता उसके साथ एक नौकर भेज देंगे, जो घर का काम करेगा।
(iii) अमित के विचार शादी के संदर्भ में दिखावे का विरोध करते हैं। उपर्युक्त वार्तालाप सुनकर उसके हृदय में तूफ़ान आ जाता है। वह सरिता के पिता की ललचाने वाली प्रवृत्ति से भी नाराज़ है क्योंकि वह अलग फ़्लैट देकर सरिता को सास-ससुर से अलग रखने का षड्यंत्र करना चाहता है।
(iv) मेरे विचार में विवाह के अवसर पर हर प्रकार की फिजूलखर्ची बंद होनी चाहिए। रीति-रिवाज़ों व परंपराओं के नाम पर ठगे जाना बुद्धिमानी नहीं है। विवाहों पर किए गए खर्च व लिए गए अपार ऋण बाद के जीवन को नरक बना देते हैं। सादा विवाह वर व वधू दोनों के लिए उचित है। दहेज का कलंक तो जड़ समेंत उखाड़ना होगा, तभी स्वस्थ समाज का निर्माण हो सकेगा।
एकांकी संचय
(Ekanki Sancha

Question 14.
Read the extract given below and answer in Hindi the questions that follow :
निम्नलिखित अवतरण को पढ़िए और उसके नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर हिंदी में लिखिए :
“काश कि मैं निर्मम हो सकती, काश कि मैं संस्कारों की दासता से मुक्त हो सकती ! हो पाती तो कुल, धर्म और जाति का भूत मुझे संग न करता और मैं अपने बेटे से न बिछुड़ती।”
[संस्कार और भावना – विष्णु प्रभाकर]
[Sanskar Aur Bhavna – Vishnu Prabhakar]
(i) वक्ता कौन है ? यह वाक्य वह किसे कह रही है ? [2]
(ii) ‘संस्कारों की दासता सबसे भयंकर शत्रु है’ यह कथन एकांकी में किसका है ? उसने ऐसा क्यों कहा ? [2]
(iii) संस्कारों की दासता के कारण वक्ता को किन-किन कठिनाइयों का सामना करना पड़ा ? [3]
(iv) प्रस्तुत एकांकी द्वारा एकांकीकार ने क्या संदेश दिया है ? [3]
Answer :
(i) वक्ता ‘संस्कार और भावना’ शीर्षक एकांकी की पात्र माँ है। वह उक्त वाक्य अपने छोटे पुत्र अतुल की पत्नी उमा से कह रही है।
(ii) ‘संस्कारों की दासता सबसे भयंकर शत्रु है’-यह वाक्य माँ के सबसे बड़े बेटे ने कहा था जिसे इस समय माँ स्मरण कर रही है। उसने ऐसा इसलिए कहा था कि उसकी माँ अपनी बड़ी बहू के विषय में अच्छा नहीं सोचती थी।
(iii) संस्कारों की दासता के कारण माँ अपने बड़े पुत्र अविनाश तथा उसकी पत्नी से बिछुड़ जाती है। उसे इस बात का गहरा दुख था कि अविनाश ने एक विजातीय बंगाली लड़की से विवाह किया था।
(iv) प्रस्तुत एकांकी द्वारा लेखक ने बताना चाहा है कि जाति, धर्म, क्षेत्रीयता आदि मानव विरोधी नहीं हो सकते हम संस्कारों के नाम पर अपनी संतान से दूर नहीं हो सकते।

Question 15.
Read the extract given below and answer in Hindi the questions that follow :
निम्नलिखित अवतरण को पढ़िए और उसके नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर हिंदी में लिखिए :
“जानता हूँ युधिष्ठिर ! भली भाँति जानता हूँ। किन्तु सोच लो, मैं थककर चूर हो गया हूँ, मेरी सभी सेना तितर-बितर हो गई है, मेरा कवच फट गया है, मेरे शास्त्रास्त्र चुक गए हैं। मुझे समय दो युधिष्ठिर! क्या भूल गए मैंने तुम्हें तेरह वर्ष का समय दिया था ?”
[महाभारत की एक साँझ – भारत भूषण अग्रवाल]
[Mahabharat Ki Ek Sanjh – Bharat Bhushan Agarwal]
(i) वक्ता कौन है ? वह क्या जानता था ? [2]
(ii) वक्ता इस समय असहाय क्यों हो गया था ? क्या वह वास्तव में असहाय था ?
(iii) श्रोता कौन है ? श्रोता को तेरह वर्ष का समय कैसे दिया था ? इस कथन को आप कितना सही – मानते हैं ? [3]
(iv) वक्ता ने जो समय दिया था उसका उद्देश्य क्या था ? क्या वह अपने उद्देश्य में सफल हो सका? स्पष्ट कीजिए। [3]
Answer :
(i) प्रस्तुत संवाद का वक्ता दुर्योधन है। वह जानता था कि उसने कालाग्नि को वर्षों घी देकर उभारा है और उसकी लपटों में सभी साथी स्वाहा हो गए।
(ii) वक्ता दुर्योधन वास्तव में असहाय हो गया था क्योंकि इतने लंबे युद्ध ने उसे निराशा और अवसाद के अतिरिक्त कुछ नहीं दिया था। [2]
(iii) श्रोता युधिष्ठिर है। उसे तेरह वर्ष का वनवास दिया गया था। दुर्योधन ने पांडवों को वनवास देकर उन्हें अपने मार्ग से हटाना चाहा था।
(iv) दुर्योधन ने जो वनवास का समय दिया था, वह पांडवों को क्षीण करने के लिए दिया था। वह सोचता था कि पांडव बिखर जाएँगे और उन पर विजय पाना सरल हो जाएगा। परंतु यह उसकी भूल थी।

Question 16.
Read the extract given below and answer in Hindi the questions that follow :
निम्नलिखित अवतरण को पढ़िए और उसके नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर हिंदी में लिखिए :
“आज कुसमय नाच-रंग की बात सुनकर मेरे मन में शंका हुई थी। इसलिये मैंने कुँवर को वहाँ जाने से रोक दिया था। संभव था कि कुँवर वहाँ जाते और बनवीर अपने सहायकों से कोई काण्ड रच देता।”
[दीपदान – डॉ. रामकुमार वर्मा]
[Deepdan – Dr. Ram Kumar Verma]
(i) उपर्युक्त कथन का वक्ता कौन है ? उसका संक्षिप्त परिचय दीजिए। [2]
(ii) नाच-रंग का आयोजन किसने और किस उद्देश्य से किया था ? [2]
(iii) बनवीर कौन है ? उसका परिचय देते हुए उसका चरित्र-चित्रण कीजिए। [3]
(iv) ‘दीपदान’ एकांकी के शीर्षक की सार्थकता बताइए तथा एकांकी के माध्यम से एकांकीकार ने क्या शिक्षा दी है ? [3]
Answer :
(i) उपर्युक्त कथन की वक्ता पन्ना है। वह कुँवर उदय सिंह का संरक्षण करने वाली धाय है। वह चंदन की माँ भी है जिसकी आयु अभी 30 वर्ष है।
(ii) नाच-रंग का आयोजन बनवीर ने करवाया था। वह महाराणा साँगा के भाई पृथ्वीराज का दासी पुत्र था। उसकी आयु लगभग 32 वर्ष थी। उसने नाच-रंग का आयोजन करवाया था ताकि कुँवर उदय सिंह की हत्या की जा सके।
(iii) बनवीर प्रस्तुत एकांकी का खलनायक है। वह महाराणा साँगा के भाई पृथ्वीराज का दासी से उत्पन्न पुत्र था। वह क्रूर, अत्याचारी तथा दुष्ट था। वह महाराणा विक्रमादित्य की हत्या करता है और राजसिंहासन पाने के लिए उदयसिंह के प्राण लेने की योजना बनाता है।
(iv) प्रस्तुत एकांकी में डॉ० रामकुमार वर्मा ने राजपूताने की वीरांगना पन्ना धाय में अभूतपूर्व बलिदान का चित्रण किया है। इस ऐतिहासिक एकांकी द्वारा राष्ट्र-भक्ति तथा राष्ट्र-प्रेम का चित्रण किया गया है। सच्चे देशभक्त पन्ना धाय की तरह अपने पुत्र की बलि चढ़ाकर भी देश के हित की रक्षा करते हैं।

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